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बहुत सुन्दर शृंगारिक गीत आ० रामबली जी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.
आपकी द्रुत प्रतिक्रिया और तदनुरूप आवश्यक संशोधन ने आपके प्रयास की गहनता के प्रति आश्वस्त किया है, भाई रामबली गुप्ताजी.
हार्दिक धन्यवाद
इस अनूठी और सुंदर रचना के लिये हार्दिक बधाई. आ० रामबली भाईजी.
रचना के शीर्षक की अक्षरी शुद्ध कर लें. शुद्ध शब्द शृंगारिक होता है जैसा कि आदरणीय सुशील सरनाजी ने उद्धृत किया है. ऐसे विन्दुओं के प्रति सचेत रहना रचनाकर्म में गंभीरता की आश्वस्ति है.
रचना अच्छी बन पड़ी है. मात्रिकतः संयत और सहज रहने का पूरा प्रयास हुआ है. इसके लिए हार्दिक बधाइयाँ. भावों का शाब्दिक होना सतत प्रयास से और सान्द्र होता जायेगा.
शुभेच्छाएँ
बहुत सूंदर ............
झन-झनन-झनन झनकाय चली,
पायल-चूड़ी खनकाय चली।
हिय के हर तार झंझोर सखे!
नव-प्रेम-राग सिरजाय चली।।5।।
नमन आदरणीय रामबली गुप्ता जी इस दिलकश शृंगारिक प्रेम रचना की प्रस्तुति पर आपको दिल से बधाई। हर बंध पाठक को बाँध के रखता है। इस अनुपम अप्रतिम प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
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