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बहुत-बहुत बधाई इस सुंदर गीत के लिए...!
बहुत ही सुन्दर रचना
सादर बधाई
बहुत सुन्दर गीत हुआ है आ० रामबली जी पुनः बधाईयाँ लीजिये शुभकामनाएँ
भुजंग प्रयात छन्द की वर्णिक स्थिति बनाती हुई अच्छी रचना हुई है, भाई रामबलीजी. आपके प्रयास पर मन प्रसन्न है.
तिमिर रात्रि का ना सदा ही रहेगा, / दिवा के उजाले भी चहुँ ओर होंगे.. इस पंक्ति को प्रश्नवाचक क्यों नहीं बना देते ? कहन की गहनता बढ़ जायेगी. तिमिर रात्रि का कब सदा ही रहेगा ? / दिवा के उजाले भी चहुँ ओर होंगे..
दूसरे, ’भी’ शब्द को ’गिराना’ अचानक आया सो अटपटा लगा. वैसे, यह कोई अशुद्धि नहीं है. क्योंकि एक हिसाब से आपने बहर-ए-मुत्कारिब की सालिम सूरत पर पंंक्तियों को बाँधा है. यह किसी रचनाकार की प्रायरिटी होती है कि वह गीत लिखे या नज़्म ..
मिला आज दुख है तो सुख भी मिलेगा में ’तो’ की यही स्थिति है.
हार्दिक शुभकामनाएँ
दुखी-दीन मिल जाएं पथ में तुम्हें जो,
बढ़ा कर सहारे का उर से लगा लो।
हृदय हर हृदय से लगाता चला है।
हृदय का भ्रमर....
बहुत सुन्दर गीत, सीख भी उत्तम , बधाई
भ्रमर ५
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