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अच्छा संदेश देती हुई सुन्दर रचना। बधाई।
खूब सुन्दर रचना ......हार्दिक बधाई
शब्द-शर मुख से निकल ना लौटता है।
सालता तन-बदन हिय को घोंटता है।
कर न दें आहत किसी को शब्द तेरे,
हे! सखे! रुककर जरा यह सोंच लो तुम।
भावना के वाह.............आपकी कोई रचना पहली बार पढ़ रही हूँ ,बहुत अच्छी प्रस्तुति है सार्थक सन्देश देती हुई इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई आपको आ० रामबली जी |
आदरणीय रामबली जी रचना के माध्यम से आपने बढ़िया सन्देश दिया है इस रचना के लिए ह्रदय ताल से बधाई स्वीकार करें सादर
aअ० रामबली जी
निस्संदेह मनोरम रचना . 'भावना के वाह;' का कोई और विकल्प इस गीत को अधिक ऊर्ज्वस्वित कर सकता है . आ० राम बली जी आपकी पहली रचना मेंने पढी , अभिभूत हुआ आपको बधाई
शब्द-शर मुख से निकल ना लौटता है।
सालता तन-बदन हिय को घोंटता है।
कर न दें आहत किसी को शब्द तेरे,
हे! सखे! रुककर जरा यह सोंच लो तुम।
भावना के वाह.............
अति सुंदर आदरणीय रामबली गुप्ता जी बहुत ही सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति हुई है। शब्द चयन सरल और भावपूर्ण , प्रवाह ऐसा कि अंत तक पाठक उसका रस्वादन करें .... दिल से बधाई स्वीकार करें।
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