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पद्य-शृंगारिक एवं कृष्ण-स्तुति

(1)

चंद्रमुखी! हे मृगनयनी! क्या यौवन-रूप सजाया है।
ओष्ठ-अरुण मधुरस के प्याले, सुंदर कंचन-काया है।
लोच कमरिया-इंद्रधनुष, लट-केश घटा की छाया है।
कटि गगरी धर जाने वाली, तूने हृदय चुराया है।

(2)

मुरलीधर धर मुरली अधरन, ग्वालिंन को नचावत हो।
विश्वम्भर भर प्रेम हृदय में, राधा को रिझावत हो।
चक्रपाणि पाणि चक्र धर, अधर्म को मिटावत हो।
दामोदर दर-दर भटकूँ मैं, क्यों न मोहि उबारत हो?

-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 6, 2016 at 11:30am

वाह्ह्ह  बहुत सुन्दर शृंगार रस से आप्लावित इस प्रस्तुति ने मन मोह लिया दिल से बधाई लीजिये शुभकामनायें 

Comment by रामबली गुप्ता on March 29, 2016 at 9:57pm
रचना पसंद करने के लिए हृदयतल से आभार आ.सुशील सरना जी
Comment by Sushil Sarna on March 29, 2016 at 7:40pm

आ. रामबली गुप्ता ही प्रस्तुति में शृंगार रस अपनी चरम सीमा पर है। अलंकारिक शब्दों का मन मोहक रूप इस प्रस्तुति की अप्रितम उपलब्धि है। दिल से बधाई स्वीकार करें आदरणीय। 

Comment by रामबली गुप्ता on March 29, 2016 at 12:15pm
भावसिक्त शब्दों से रचनाओं का मान बढ़ाने के लिए हृदयतल से आभार आदरेया कांता जी। सब आप ही लोगों से और आप लोगों की प्रस्तुतियों से ही सीखता हूँ। पुनः आभार।
सादर
Comment by kanta roy on March 29, 2016 at 11:51am

कटि गगरी धर जाने वाली, तूने हृदय चुराया है।--------- अद्वितीय  ! चकित हूँ  इस  सम्प्रेषण से  !  पंक्तियों में बसा  माधुर्य यहाँ  मन को झंकृत  सा   कर  जाता  है  . 

मुरलीधर धर मुरली अधरन.....वाह ! 

विश्वम्भर भर प्रेम हृदय में......अति -सुन्दर !

चक्रपाणि पाणि चक्र धर, ..... अप्रतिम  संयोजन ! 

दामोदर दर-दर भटकूँ मैं, .........इन पंक्तियों  में  अजब  का  सम्मोहन  है ! मुझे बेसब्री से  इंतज़ार  रहेगा  आपकी  अन्य  रचनाओं  का  भी  , बहुत  बहुत  बधाई  आपको  आदरणीय  रामबली  जी  इन  सृजनो  के लिए  . सादर  

Comment by रामबली गुप्ता on March 29, 2016 at 11:12am
रचना पसंद करने के लिए हार्दिक आभार आ.मोहित जी

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