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गीत-प्रीतम सपने में आये थे

प्रीतम सपने में आये थे।
सखि! मुझको बड़ा सताये थे।।
सुंदर वसन सजा तन पर,
वे मंद-मंद मुस्काये थे।
प्रीतम सपने में आये थे।
स्नेह-सेज पर सोई थी।
यादों मे उनके खोई थी।
नयनों ने पट ज्यों बंद किये।
उनके ही दर्शन पाये थे।
प्रीतम सपने में आये थे।
साँवली सूरत नैन विशाल।
लख छवि सखि! मैं हुई बेहाल।।
मणियों की माला साजे उर।
कंदर्प-रूप धरि आये थे।
प्रीतम सपने में आये थे।
प्यारी-प्यारी बातें कीन्हां।
बाहों में मुझको भर लीन्हां।
अधरों का मधुरस पीने को
बन मत्त मधुप तन छाये थे।।
प्रीतम सपने में आये थे।
लाज-शरम से मैं मर जाऊँ।
शेष सखी! ना अब कह पाऊँ।।
कटि मधि निज कर डाल मुझे,
वे सारी रात जगाये थे ।
प्रीतम सपने में आये थे।

-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by रामबली गुप्ता on March 29, 2016 at 12:28pm
रचना पसंद करने के लिए हार्दिक आभार आ.मोहित जी
Comment by रामबली गुप्ता on March 28, 2016 at 11:49am
हृदयतल से आभार आ. समर जी गीत पसंद करने के लिए
Comment by Samar kabeer on March 28, 2016 at 11:33am
जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब,कोमल भावों से सजे इस सुंदर गीत के लिये बधाई स्वीकार करें ।
Comment by रामबली गुप्ता on March 28, 2016 at 11:32am
हृदयतल से आभार आदरेया कांता जी
मुख्यतः गीत और छन्दों में ही लिखता हूँ।
अतुकांत और ग़ज़ल कम लिख पाता हूँ।
Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 10:50am

प्रीतम सपने में आये थे।
सखि! मुझको बड़ा सताये थे।।
सुंदर वसन सजा तन पर,
वे मंद-मंद मुस्काये थे।
प्रीतम सपने में आये थे।.............वाह !  कितनी अनुपम , कोमल सी रचना  रची  है  आपने आदरणीय रामबली  जी , मुझे  कविता के  इन  सरसता में  जैसे सरस्वती के  दर्शन हुए . ह्रदय  झूम  -झूम  उठा  पढ़ते  ही . बहुत  -बहुत  बधाई  आपको   

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