जख्म फिर से हरा हो गया
दर्द -ए -दिल आइना हो गया
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याद ऐसा किया देख कर
सोच के बाबरा हो गया
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काम के नाम ने चोट की
दिल बचा दिल जला हो गया
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नींद का आँख से रूठना
रोज़ का सिलसिला हो गया
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फीस में छूट थी जो मिली
लाडला फिर बड़ा हो गया
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दाद दो तुम जरा इसलिए
गिर के वो खड़ा हो गया
.
खेल की पोल थी जब खुली
फिर मज़ा किरकिरा हो गया
.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
मुनीष 'तन्हा'...नादौन..
9882892447
Comment
आपने २१२ २१२ २१२ बह्र पर लिखा है
नींद का आँख से रूठना
रोज़ का सिलसिला हो गया--शेर बहुत अच्छा है मगर तकाबुले रदीफ़ दोष का शिकार हो गया ---रूठना नींद का आँख से ...कर सकते हैं
दाद दो तुम जरा इसलिए
गिर के वो खड़ा हो गया---सानी की बह्र गड़बड़ है
बढ़िया प्रयास है और बेहतर करने की कोशिश ज़ारी रखिये
बहरहाल बधाई आपको
.
.
आदरणीय तन्हा भाई , जैसा की आ. मिथिलेश भाई जी ने काहा है , बह्र ऊपर लिख दिया कीजिये , ताकि समझने समझाने मे आसानी हो । मुज्खे आपकी ग़ज़ल के सभी मिसरे एक ही बह्र मे नही लग रहे है , आप तक्तीअ कर के देखियेगा , बहर लिख दें तो कुछ निश्चित रूप से कहा जा सके ।
बहर हाल गज़ल के भाव अच्छे हैं , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
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