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उनकी नज़रों से जो उतर जाए |
आसरा ढूंढ़ने किधर जाए |
कर लिया है यक़ीन उनपे मगर
डर है यह भी न वो मुकर जाए |
जो ज़ुबां कर न पाए उल्फ़त में
आँख चुप चाप उसको कर जाए |
भीड़ आए नज़र क़ियामत सी
शोख़ उनकी नज़र जिधर जाए |
मिल गया जब खिताबे दीवाना
उनके कूचे से कौन घर जाए |
जिसके घर का पता नहीं कोई
कैसे उस तक कोई ख़बर जाए |
दिन में तस्दीक़ आए रात नज़र
ज़ुल्फ़ उनकी अगर बिखर जाए |
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
मोहतरम जनाब विजय साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ,महरबानी
मोहतरम जनाब रवि शुक्ल साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ,महरबानी
जनाब धर्मेन्द्र कुमार साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ,महरबानी
इस खूबसूरत गज़ल के लिए बहुत सारी बधाई
अच्छे अश’आर हुए हैं तस्दीक जी, दाद कुबूल करें
जनाब आशुतोष मिश्र साहिब ,ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
भाई तस्दीक जी इस शानदार ग़ज़ल पर ढेर सारी शुभकामनायें सादर
जो ज़ुबां कर न पाए उल्फ़त में
आँख चुप चाप उसको कर जाए | waah इस रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय
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