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अशुद्ध व्याख्या (लघुकथा)

अपनी क्षमता से अधिक भारी दाना उठा कर धीरे-धीरे दीवार पर चढती एक चींटी को देख उसके साथ चल रही दूसरी चींटी चौंकी और उसने कहा, "इतना भारी दाना! तुम फिसल जाओगी|"

पहली चींटी कुछ क़दमों ही में हांफ चुकी थी, लेकिन उसने दृढ शब्दों में उत्तर दिया, "कल सभा में हमारे नेता हाथी ने कहा था कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, चींटियों को भारी से भारी दाना उठाना चाहिये, तभी हमारी गरीबी खत्म होगी, हमारे सपने पूरे होंगे|"

दूसरी ने मुस्कुरा कर कहा, "लेकिन अपने सामर्थ्य के अनुसार ही कोशिश करनी चाहिए, धीरे-धीरे ही क्षमता बढती है तुरंत नहीं... हाथी स्वयं भी अपने सामर्थ्य से अधिक काम नहीं कर सकता"

पहली ने फिर हाँफते हुए कहा, "हाथी कभी गलत नहीं बोलता, वह जबसे हमारा नेता बना है, तबसे पुराना राजा शेर दुम दबा कर बैठा है और पास के जंगल में रात को जो गीदड़ रोते हैं, उनकी आवाज़ दबाने और हमारी अच्छी नींद के लिये हाथी ध्वनीरोधी तकनीक भी ला रहा है| मैं भले ही सौ बार फिसलूं, लेकिन सफल ज़रूर होऊँगी|"

"मानती हूँ, सौ बार फिसलने के बाद तुम ज़रूर सफल होगी, लेकिन फिर तुम सिर्फ भार ढोने को ही सोचती रहोगी, अपने बच्चों की भूख को भूल जाओगी और तब तक हाथी मनमानी.... "

दूसरी ने कहते-कहते देखा कि पहली चींटी अब उसे सुन नहीं रही, वह थक चुकी है और फिसलने वाली है, उसने कहा,

“लेकिन...”

और अपने मुंह के दाने को फैंक कर अपनी मित्र को सहारा दे दिया|

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 24, 2016 at 10:49pm

वाह बढ़िया प्रतीत्कात्म्क लघुकथा हुई है | हार्दिक बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 26, 2016 at 10:54pm

आदरणीय चंद्रेश जी, बहुत बढ़िया प्रतीकात्मक लघुकथा कही है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

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