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नई-नई राहें होंगी
नए-नए सहारे होंगे।
सूर्योदय से पहले
पक्षी चहचहा रहे होंगे
छोड कर निज नीड
नई तमन्नाओं के साथ
विचरण कर रहे होंगे।
नई-नई राहें होंगी
नए-नए सहारे होंगे।
हम जहाँ भी जाएंगे
तमन्नाओं की राहों पर
कुछ हमसे खुश
कुछ हमसे खफा होंगे
नई तमन्नाओं के साथ
नए इरादे भी बुलन्द होंगे।
नई-नई राहें होंगी
नए-नए सहारे होंगे।
पहाड़ों में-वादियों में
मैदानों में-घाटियों में
कल्याण का ही सहारा होगा
दिलों में हम सबके
हिन्दुस्तान प्यारा होगा।
नई-नई राहें होंगी
नए-नए सहारे होंगे।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 2, 2016 at 8:54am
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद आप लोगों की मेहरबानी से सीख रहा हूँ लिखना धीरे धीरे
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 2, 2016 at 8:51am
परम श्रद्धेय समर कबीर जी हौसला देने के लिए हार्दिक धन्यवाद
आप यूँ ही मार्गदर्शन करते रहें हम कोशिश करते रहेंगे बहुत बहुत धन्यवाद

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 2, 2016 at 2:11am

आदरणीय सुरेश कुमार जी, कविता का बढ़िया प्रयास हुआ है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. यहाँ आपको काव्य की विभिन्न विधाओं पर बहुत बढ़िया आलेख और प्रस्तुत हुई रचनाएँ मिल जायेंगी. उन्हें भी एक बार पढ़ जाइएगा. सादर 

Comment by Samar kabeer on May 1, 2016 at 4:33pm
जनाब सुरेश कुमार कल्याण जी आदाब,बहुत अच्छी लगी आपकी कविता,बधाई स्वीकार करें ।

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