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मित्रों-सहयोगियो, तुम
रूको तो सही,
भागते हो किधर? कुछ
सुनो तो सही।

आसमां के तारों को,
तुम देखो तो सही।
चांद नजर आएगा,
तुम पहचानो तो सही।

चांद ही मेरी मंजिल है,
कदम बढाओ तो सही।
मंजिल मिल जाएगी हमें,
हिम्मत जुटाओ तो सही।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 24, 2016 at 9:23pm
श्रद्धेय सौरभ पांडे जी हार्दिक आभार मुझे गजल लिखनी नहीं आती परन्तु कोशिश करता हूं हौसला बढाने के लिए हार्दिक धन्यवाद

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 24, 2016 at 7:58pm

थोड़ी कोशिश की होती आपने तो इस अभिव्यक्ति को ग़ज़ल का स्वरूप मिल् सकता था. भावोद्गार केलिए शुभकामनाएँ 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 24, 2016 at 7:04pm
आदरणीय बशर भारतीय जी हार्दिक धन्यवाद
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 24, 2016 at 7:03pm
आदरणीया कान्ता राॅय जी हौसला बढाने के लिए हार्दिक धन्यवाद
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 24, 2016 at 7:01pm
आदरणीय सतविंदर जी हौसला बढाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 24, 2016 at 7:00pm
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आपका बहुत बहुत आभार हार्दिक धन्यवाद
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 24, 2016 at 6:58pm
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सादर धन्यवाद
Comment by बशर भारतीय on May 24, 2016 at 2:42pm
उमदा
Comment by kanta roy on May 23, 2016 at 4:33pm
बढ़िया कोशिश की है आपने आदरणीय सुरेश जी । बधाई
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 22, 2016 at 10:45am
वाह्ह्ह्!

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