ठाकुर सरकार, माफ़ कर दें . मेरी बिटिया अभी नासमझ है .तीन दिन से चूल्हा नहीं जला सरकार .’
‘क्यों चूल्हे को क्या हुआ ?’
‘सरकार, उनका पुलिस चोरी के शक में पकड़ ले गयी , वही कुछ कमा कर लाते थे, घर् में कुछ था ही नहीं तो चूल्हा कैसे जलता?’
‘और---- तेरी बिटिया ने भी तो चोरी ही की है , तुम सब घर भर चोर हो तो माफी कैसी ?’
‘नहीं सरकार, उन्होंने चोरी नहीं की, पुलिस साबित नहीं कर पायी ‘
‘मगर तुम्हारी बेटी तो चोरी करती पकड़ी गयी .’
’हाँ सरकार मगर-----‘
‘अब अगर मगर कुछ नहीं उसे तीन दिन मेरे घर में रहकर काम करना होगा और तुम उससे मिलने नहीं आओगी . यह मेरा इन्साफ भी है और हुक्म भी’
‘जी सरकार -----‘-उसने मरी से आवाज मे कहा और रोती-बिलखती चली गयी .
ठाकुर के मित्र जो यह इन्साफ देख रहे थे, हंस कर बोले –‘क्या चुराया था लडकी ने ?’
‘एक प्याज चुराया था, सुना नहीं तीन दिन से चूल्हा नही जला था’
‘तो उस भूख की इतनी बड़ी सजा ------?
‘तुमने उसे अभी देखा नहीं --- पन्द्रह की पूरी हो गयी है .’
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
आ० समर कबीर साहिब . बहुत बहुत धन्यवाद .
आ० विजय सर ! आपकी प्रतिक्रिया का आभारी हूँ . .
आ ० सुरेश कुमार कल्याण जी , बहुत बहुत शुक्रिया .
आ० श्याम नारायण जी . हार्दिक आभार .
आ० राहिला जी . आपका आभार .
प्रिय पवन जी , एक भूख ठाकुर साहिब की भी है , आभार .
आ० सरना जी . आपकी उत्साहवर्धक टीप से आश्वस्त हुआ . सादर .
आ० जानकी वाही जी , आपने सही कहा . सामंतवाद का वीभत्स चेहरा . आभार .
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