1222-1222-1222-1222
ग़ज़ल
बदलना भी ज़रूरी है सदा अच्छा नही रहता
खुदा से प्यार करते हो तो फिर पर्दा नही रहता
हमारे सामने देखो बना अफसर से वो माली
दिनों का फेर है साहिब सदा पैसा नहीं रहता
बने गद्दारहै जो घूमें करें हैं देश से धोखा
उन्हें फिर मौत मिलती है निशां उनका नहीं रहता
जमीं तिड्की हलक प्यासे तडपते है परिंदे भी
लगाये पेड़ जो होते तो फिर सूखा नही रहता
ये नफरत की हैं दीवारें इन्हें तुम तोड़ दो वरना
निशाना तुम पे भी होगा कोई बच्चा नहीं रहता
उठो भारत के लोगों तुम जरा इतिहास को देखो
सदा सच का यहाँ डंका कोई झूठा नहीं रहता
मुनीश 'तन्हा'..नादौन
988289247
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरनीय मुनीष भाई , गज़ल अच्छी हुई है , बधाइयाँ स्वीकार करें ! कुछ कमिया बताई गईं हैं ख्याल कीजियेगा । मुझे एक मिसरा बेबहर भी लग रहा है ---
बने गद्दा/ रहै जो घू/ में करें हैं दे/ श से धोखा --- तीसरा रुक्न देखियेगा
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