122 – 122 – 122 - 122
न मुश्किल बढ़ा आजमाने से पहले
नजर को मिला दिल लगाने से पहले
सफ़र ज़िन्दगी का रहा फिर अधूरा
खुदा याद आया न जाने से पहले
वो दिन रात हलकान पैसे में देखो
करे मोल बाज़ार आने से पहले
तुम्हे भी तो आखिर यही सब मिलेगा
जरा सोच लो तुम सताने से पहले
मुहब्बत में शर्तें तो होती नहीं हैं
सही पाठ पढ़ लो ज़माने से पहले
.
गयी उम्र सारी कमाने में लेकिन
हुई खर्च सबको दिखाने से पहले
है महबूब अपना अनोखा सभी से
गिलौरी चबाए निशाने से पहले
.
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
वाह बहुत बढ़िया ग़ज़ल है हार्दिक बधाई लीजिये |आद० गिरिराज जी की बात से मैं भी सहमत हूँ |
आदरणीय मुनीष भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाइयाँ आपको । बस अंतिम शेर ऐसा कुछ कह नही पा रहा है , जिसे कहना ज़रूरी हो ।
मुनीश जी रचना पर मेरी हार्दिक बधाई
आदरणीय मुनीश जी इस रचना पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर बधाई के साथ
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