2122 2122 2122
जब हवायें चल रहीं हैं क्यों घुटन है
सूर्य है उजला तो क्यों काला गगन है
कल बहुत उछला था अपनी जीत पर जो
आज क्यों हारा हुआ बोझिल सा मन है
चिन्ह घावों का नहीं है पीठ पर अब
पर हृदय में आज भी जीती चुभन है
मन ललक कर आँखों को उकसा रहा था
कह रहा संसार पर दोषी नयन है
सत्य तर्कों में समाया है भला कब ?
तर्क झूठों को बचाने का जतन है
क्या हृदय-मन, सोच जीती है कहीं पर
या कि जीता आ रहा जो , सिर्फ तन है
गालियाँ पारस सी होने लग गयीं क्या ?
जिसपे बरसी आज वो चमका रतन है
सिद्धि को सर पर उठाने की ललक में
आज गाली खा रहा हर आचमन है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
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