For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काँपते पत्ते / लघुकथा

"सुनो , कुछ कहना है " बड़ी हिम्मत करके पति की तरफ देखा उसने ।
" क्या हुआ अब , आज फिर माँ से कहा-सुनी हो गई है क्या ?" उन्होंने पूछा ।
" अरे नहीं , माँ से कुछ नहीं हुआ । बात दीपू की है " उसने तीखे स्वर में कहा ।
" अब उसने क्या कर दिया "
" वो ..."
" वो क्या , अरे बताओ भी , किसी से सिर फुट्व्वल करके तो नहीं आया है " उन्होंने तमतमाये चेहरे से पूछा ।
" कैसी बात करते है आप , अपना दीपू वैसा नहीं है " वह एकदम से कह उठी ।
" तो कैसा है , अब तुम्हीं बता दो ? "
" उसकी एक गर्ल फ्रेंड है , आज ही मुझे पता चला है "
" तुम्हारा दिमाग तो सही है , मालूम भी है क्या कह रही हो । वो बहुत छोटा है इन सबके लिए "
" उतना छोटा भी नहीं है । दसवीं का परीक्षा दिया है उसने "
" अच्छा , क्या वो स्पेशल फ्रेंड है ?"
" हाँ , इसलिए तो चिंतित हूँ "
"हम्म , चिंता का विषय तो है । इस बात में दीपू को आगे बढ़ने के लिए प्रश्रय नहीं दिया जा सकता है । "
" तो क्या आप उसके साथ .... " उस स्वर के आतंक से वह चौंक उठी ।
" कल सुबह बात करता हूँ उससे ।" सुनते ही सुबह होने और आने वाले निर्णय के क्षण की अनिश्चितता से उसके अंदर चटाख - चटाख सा कुछ टूट रहा था ।



मौलिक और अप्रकाशित

Views: 903

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on June 16, 2016 at 12:29am

कथा  पर उपस्थिति   और  सराहना  के  लिए  ह्रदय  से  आभार  आपको  आदरणीय डॉ आशुतोष जी 

Comment by kanta roy on June 16, 2016 at 12:28am

आदरणीय गिरिराज  जी , बिलकुल  सही  पकडे है  आप . माँ चरित्र अक्सर ऐसी ही  होती  है . हाट-बाज़ार , दाल-चावल ,रिश्ते-नातेदारी  के  लेन-देन तक  सभी  फैसले  स्वयं  ही  लेती  रहती  है  अक्सर . लेकिन जब  भी  कोई  बड़ी दुश्चिंता  वाली  बात  हो  तो  पति ही याद  आते  है उस  वक्त . सच   कहें तो  ये  परिस्थिति आज  के  सन्दर्भ  में  बहुत  बड़ी  चिंता  का  विषय है . कैसे क्या किस   तरह  से इसे सुलझाया  जाए . एक  माँ  होने  के  नाते मैं  स्वयं  भी दुविधा  में  हूँ .,इसलिए पिता ही  आसान  लगे  इसके  लिए :))))

विडिओगेम और  कार्टून करेक्टर के  संग पलते  बढ़ाते बच्चे  जिद्दी व आत्मकेंद्रित  से  होते  जा  रहे  है . सुख  साधनों का  सहजता  से  प्राप्त  होना एक  ही प्रकार का मनोवृत्ति उभर  कर  आ  रही  है . पाश्चात्य संस्कार हमारी जड़ों को  खोखली  करने  पर  उतारू  है .इन्हीं विसन्गतियो से  निकलकर  ये  कथा हमारे  सामने  आई  है .अब  माँ या  पिता कैसे अपनी  जिम्मेदारी का  निर्वहन  करे  ऐसे  में , ये  चिंता का  विषय  तो है  ही . अच्छा   लगा कथ्य पर  आपकी विवेचना . ह्रदय  से  आभार  आपको 

Comment by kanta roy on June 16, 2016 at 12:13am

तहेदिल  आभार  आपको  आदरणीय  तेजवीर  जी  कथा को  पसंद  करने  के  लिए 

Comment by kanta roy on June 16, 2016 at 12:11am

जी ,  सही  कह  रहे  है  आप  आदरणीय शहजाद  जी ,  रचना  की  बेहतरी  की  गुंजाइश हमेशा  बनी  ही  रहती  है  क्योकि  कोई  भी  रचना  मुकम्मल नहीं  होती  है . अगर  कुछ नई चीज ध्यान  में  आते  ही  इसको बेहतर  करने  की  कोशिश  करुँगी . उचित  मार्गदर्शन  के  लिए  दिल  से  आभार  आपको 

Comment by kanta roy on June 16, 2016 at 12:09am

आपकी उपस्थिति और लघुकथा को  पसंद  करने  के लिए  ह्रदय  से आभार  आपको   आदरणीय  सुशील  सरना  जी 

Comment by kanta roy on June 16, 2016 at 12:07am

कथा  का  मर्म  पकड़ते  हुए रचना की  सराहना  मन  को  भा  गया  आदरणीया  राहिला  जी ,  ह्रदय  से  आभार  आपको 

Comment by kanta roy on June 16, 2016 at 12:06am

आदरणीया  राजेश  कुमारी  जी ,कथा  पर  आपकी  उपस्थिति मेरे  लिए सुखद है .रचना पसंद  करने  के  लिए  आभार  आपको .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 15, 2016 at 12:22pm

हार्दिक बधाई आदरणीया कांता जी ..माँ की भावुक स्थिति बखूबी चित्रण किया है आपने इस लघु कथा के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2016 at 10:31am

आदरणीया कांता जी , माँ की ममता को आपकी कथा परिभाषितन करने मे सफल हुई है , हार्दिक बधाई ! पर सोचने वाली बात ये है कि क्या सारी कठोरता की ज़िम्मेदारी पिता की है ? और इस तरह बच्चे की ग़लतियों को देख - जानकर भी स्वयँ माँ का कुछ न करना और कठोरता की स्थिति को पिता के ऊप डाल देना क्या सही है । मै उस कल की कल्पना अगर करूँ तो मुझे लगता है कि पिता डांत या पिटाई के समय ये महिला बच्चे को केवल पुचाकारेगी और खुद को ममता मयी साबित करने मे सफल होगी । लेकिन वो एक ज़िम्मेदार माँ मेरी नज़रों मे नही है ।
एक प्रशन आता है मेरे मन में -


अगर माँ की शिकायत सुन कर पिता ये कह  दे , कि तुम ही सँभालो अपने लाड़ले को , जो करना करो , तो माँ क्या करेगी ? सोचियेगा ।

Comment by TEJ VEER SINGH on June 13, 2016 at 6:15pm

हार्दिक बधाई आदरणीय कांता रॉय जी! बेहतरीन प्रस्तुति!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
9 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
21 hours ago
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service