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दोहा छंद....
बादल-बदली-बूंद से, हवा हुई जब नर्म.
ज्येष्ठ ताप-बैसाख ने, जोड़ें रिश्ते मर्म.१
 
हवा दिशाओं को करे, अनुप्राणित रस सिक्त.
बादल उनको जी रहा,  वर्षा  करती  रिक्त.२
 
सावन में वर्षा नहीं,  नहीं हरित व्यवहार.
नीम वृक्ष के गांव में, चिंचियाता बॅंसवार.३
 
सावन में पावक लगी, जले खेत-वन-बाग.
नदी ताल सर ऊंघतीं,  लिये  कोंढ़  के  दाग. ४
 
सावन  के  झूले  नहीं,  मिले  लटकते  सत्य.
बाहुबली अति वासना, सिर चढ़ करती नृत्य.५
 
सत्य ब्रह्म तन सूर्य मुख, कर स्वर्णिम शुभलाभ.
बीज   प्रेम   के  रोपते,  फलते   यश   अमिताभ.६
 
दिव्य नयन संसार में, नदिया-सागर-झील.
मानव उसमें उतर कर,  लगे  हंस - कंदील. ७
 
मौलिक व अप्रकाशित
रचनाकार..... केवल प्रसाद सत्यम
चलभाष्य--- ९४१५ ५४१ ३५३

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2016 at 8:13pm

आ० महर्षि भाई जी,  आपका हार्दिक आभार ..  सादर

Comment by maharshi tripathi on June 16, 2016 at 10:19pm
सुंदर प्रस्तुति आ.केवल प्रसाद जी !!!
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 15, 2016 at 7:00pm

आ० भण्डारी भाई जी, प्रणाम,....जी बिल्कुल सही कहा. अभी ठीक करता हूं. दोहों की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार.  सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2016 at 5:28pm
आदरनीय केवल भाई , बढिया दोहावली  के लिये हार्दिक बधाई ।
सावन में वर्षा नहीं,  नहीं हरित व्यवहार.
नीम वृक्ष के गांव में, चिंचियाता बॅंसवार. -- बहुत खूब !
सावन में फिर आग लगी,   -- इस चरण मे एक मात्रा अधिक है , देख लीजियेगा ।
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 14, 2016 at 6:41pm

आ० उसमानी भाई जी,  सादर  प्रणाम.  दोहों की सराहना एवं संदेश को मुखर करने के लिये आपका हार्दिक आभार.  सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 14, 2016 at 6:39pm

आ० श्याम  नारायण भाई जी,  सादर  प्रणाम.  सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार.  सादर

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 14, 2016 at 2:33pm
प्रेम-बीज-रोपण ही सभी के लिए, पारस्परिक अस्तित्व-चक्र के लिए अपरिहार्य है। समसामयिक परिदृश्य पर ज्वलंत मुद्दों पर शिल्पबद्ध सटीक दोहाावली हेतु तहे दिल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय केवल प्रसाद जी।
Comment by Shyam Narain Verma on June 14, 2016 at 12:46pm
बहुत सुन्दर दोहे आदरणीय  । हार्दिक बधाई आपको 

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