ग़ज़ल ( हादसा घट गया )
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212 -212 -212
यक बयक हादसा घट गया ।
राहे उल्फत से वह हट गया ।
ज़ुल्म में ही था शामिल करम
था गुमाँ मुझको वह पट गया ।
जाऊं सदक़े सियासत तेरे
हर कोई क़ौम में बट गया ।
नाव भी डगमगाने लगी
हो रहा है गुमाँ तट गया ।
ऐसा लगता है फ़हरिस्त से
नाम शायद मेरा कट गया ।
खाये पत्थर गली में तेरी
सर मेरा यूँ नहीं फट गया ।
उनका कूचा यह तस्दीक़ है
मैं यहां यूँ नहीं डट गया ।
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
मोहतरमा काँता साहिबा ,ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया
छोटी बहर में आपने गजल को बेहतरीन ढंग से निखारा है . सादर .
यक बयक हादसा घट गया ।
राहे उल्फत से वह हट गया ।---- बेहतरीन है ये !
खाये पत्थर गली में तेरी
सर मेरा यूँ नहीं फट गया ।------ वाह , बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय तस्दीक जी ,बधाई प्रेषित है .
मोहतरम जनाब गिरिराज साहिब ,ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
जनाब महा ऋषी साहिब ,ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
जनाब आशुतोष साहिब ,ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
जनाब श्याम नारायण साहिब ,ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
आदरनीय तस्दीक भाई , छोटी बह्र मे अच्छी गज़ल कही है , दिली मुबारकबाद कुबूल कीजिये ।
इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें /
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