2122 1122 1122 22 /112
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तुम जो चाहो तो ये गिर्दाब, किनारा लिख दो
डूब भी जाये कोई , पार उतारा लिख दो
कैसे उस चाँद को धरती पे उतारा लिख दो
कैसे आँगन में हुआ खूब नज़ारा लिख दो
खटखटाने से कोई दर न खुले, तो दर पर
बारहा मैने तेरा नाम पुकारा लिख दो
जंग अपनो से भला कैसे कोई कर लेता
ख़ुद को जीता, तो कहीं मुझको ही हारा लिख दो
हो यक़ीं या कि न हो तुम तो लिखो सच अपना
दश्ते तारीक में जुगनू था सहारा लिख दो
कौन आयेगा यहाँ अश्क़ तुम्हारा पढ़ने
हँसते गाते हुये ही वक़्त गुज़ारा लिख दो
रेत पर बे वफा लिक्खो नहीं, मिट जायेगा
संग ए दिल में ही कहीं और दुबारा लिख दो
फिर न कहना कि बहुत तल्ख़ लगीं थीं बातें
मेरी फित्रत में तुम्हें क्या है गवारा लिख दो
कोई बदलेगा नहीं छोड़ो अदालत तुम भी
या तो मुंसिफ ने है कितनों को सुधारा लिख दो
यार तुम भी तो पढ़ो मेरी ग़ज़ल के मिसरे
कौन कहता है इसे पाँच सितारा लिख दो
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
रेत पर बे वफा लिक्खो नहीं, मिट जायेगा
संग ए दिल में ही कहीं और दुबारा लिख दो
फिर न कहना कि बहुत तल्ख़ लगीं थीं बातें
मेरी फित्रत में तुम्हें क्या है गवारा लिख दो
वाह आदरणीय कितनी ख़ूबसूरती से अपनी अहसासों को कागज़ पर उतारा है ... बहुत खूब ... इस दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई से।
आदरणीय सुशील सरना भाई , सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय आशुतोष भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
रेत पर बे वफा लिक्खो नहीं, मिट जायेगा
संग ए दिल में ही कहीं और दुबारा लिख दो
फिर न कहना कि बहुत तल्ख़ लगीं थीं बातें
मेरी फित्रत में तुम्हें क्या है गवारा लिख दो
वाह आदरणीय कितनी ख़ूबसूरती से अपनी अहसासों को कागज़ पर उतारा है ... बहुत खूब ... इस दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई से।
आदरणीय गिरिराज भाई साब ..इस ग़ज़ल की तो जितनी भी तारीफ़ की की जाए कम है ..हर शेर उम्दा है सबसे खूबसूरत बात तो इस ग़ज़ल की ये है कि इसके हर शेर में सोच का एक नया पन देखने को मिला ..किसी शेर बिशेस को उद्धृत करने में मैं खुद को असमर्थ महसूस कर रहा हूँ ..और प्रतिक्रिया के बाद भी फिर से ग़ज़ल पढने की छह बलवती हो रही है यह इसकी उत्कृष्टा का प्रमाण भी..सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय योगराज भाई , आपकी इस मुखर सराहना से दिल गार्डन गार्डन हो रहा है , जो कुछ भी मुझमे शुभ है वो आप सब की और इस मंच की बदौलत है , सबके हिस्से की सराहना देने के बाद मेरे पास अगर कुछ बचता है तो वो है और अच्छा कह सकने का प्रयास । मै सतत प्रयत्नशील हूँ कि और अच्छा कह पाऊँ । आपका और इस मंच का हृदय से आभार ।
ग़ज़ल को फीचर करने के लिये आपका हृदय से आभार ।
आदरणीय श्याम नाराइन भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से अभार ।
भोपाल आयोजन में यह ग़ज़ल सुनने का अवसर मिला था, मुशायरा लूट लिया था आपकी इस ग़ज़ल ने आ० गिरिराज भंडारी जीI एक एक शेअर पर न केवल भरपूर दाद ही मिली थी बल्कि आपका कलाम खत्म होने के बाद आपको इसी ग़ज़ल के कई शेअर शेअर सुनाने के लिए दोबारा आमंत्रित भी किया गया थाI आपकी इस ग़ज़ल का हर शेअर सीधा दिल में उतरने वाला हुआ है, किसी एक को हासिल-ए-ग़ज़ल कहना बेहद मुश्किल हैI क्योंकि यह पांच-सितारा नहीं बल्कि सात सितारा ग़ज़ल है, इस हेतु मेरी ढेरों ढेर बधाई स्वीकार करेंI
बहुत ही सुन्दर , हार्दिक बधाई आपको …………..सादर |
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