२१२२ २१२२ २१२२ २१२
इक दफा ये मर्ज लग जाये तो छुटकारा नहीं
इश्क है ये मस्त खुशबू का कोई झोंका नहीं
यार तुमने जिन्दगी को गौर से देखा नहीं
दरमियाँ मेरे तुम्हारे लक्ष्मनी रेखा नहीं
तपती साँसों की तपिश कुछ सच बयानी कर रही
धड़कने कहती हैंं दिल की प्यार है धोखा नहीं
इश्क का अहसास कैसे ज़िंदगी में आ गया
शेख जी कुछ राय देंगे मैंने कुछ सोचा नहीं
इश्क है रब की इबादत राज गहरा जान लो
देख लो माली ने भंवरे को कभी टोंका नहीं है
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय आशुतोष जी आपके अाखिरी शेर के भाव समझ तो आ रहेे थे उसका आपने संशोधन भी किया हैै । आपका आशय यह है कि इश्क खुदा की देन है एक इबादत है इसीलिये तो माली ने भवरे और कली के शुद्ध प्रेम को देख कर उसे रोका टाेका नहीं
आपके इसी भाव को यथावत रखते हुए एक त्वरित सुझाव इस तरह भी हो सकता है
इश्क है रब की इबादत राज गहरा जान लो
देख लो माली ने भंवरे को कभी रोका / टोका नहीं
घड़कने दिल में इ जाफत का आभास हो रहा था जिसका इशारा आदरणीय गिरिराज जी ने किया था दो भिन्न भाषा के श्ाब्द की इजाफत मान्य नहीं है इस लिये शायद गिरिराज जी ने कहा था
इसके लिये भी एक त्वरित सुझाव है
तपती सांसों की तपिश क्या रूह से उठती नहीं
धड़कने कहती हैंं दिल की प्यार है धोखा नहीं आप के भाव के अनुरूप जो सही लगे उसी को रखें शेर में शायर की वैचारिक स्वतंत्रता के हम सदैव पक्षधर है । ये तो सोच को एक दिशा देने के लिये सुझाव मात्र है । सादर हमारे कहे को मान देने के लिये
आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
1-- दरमियाँ मेरे तुम्हारे लक्ष्मण रेखा नहीं --- मिसरा बे बहर है
2--
धड़कने दिल कह रही उल्फत है ये धोखा नहीं -- धड़कने दिल -- ऐसा लग रहा है जैसे इजाफत लागया हो , धड़्कन हिन्दी शब्द है ।
3-- अंतिम शेर बात कह नही पा रहा है , देख लीजियेगा ।
आदरणीय रवि सर आपकी प्रतिक्रिया से मुझे बेहद खुशी हो रही है ..आदरणीय सर मैं इस् पर फिर चिंतन करूंगा .इश्क को इबादत सा मानने के कारन खलल न हो ऐसा सोचा था और इसी बात को ध्यान में रखकर कभी माली ने भ्रमर को रोका टोका नहीं ..आप थोडा खुल कर परामर्श देंगे तो मुझ जैसे कई सीखने वालों को फायदा होगा ..सादर नमन के साथ
आदरणीय डा आशुतोष जी बढि़या गजल कही है अापने बधाई स्वीकार करे आखिरी शेर के सानी मिसरे में कुछ अनकहा सा रह गया है बात साफ साफ नहीं आ पा रही है
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