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हाय वो कसमे वो वादे क्यूँ भुलाये तूने
क्या सबब रो के यूं आंसू भी बहाये तूने
खून से लिख्खे खतों में थी मेरी जान बसी
बेरहम हो के सभी ख़त वो जलाये तूने
अपने अश्कों को बिखेरा है बना के शबनम
मुझको मालूम ये मंजर क्यूँ सजाये तूने
थम रही साँसें क़ज़ा देने लगी है दस्तक
रुख से पर गेसू न पल भर को हटाये तूने
सात जन्मों को निभाने का यूं करके वादा
इक जनम में भी नहीं वादे निभाये तूने
जिनको बादल ही समझती है फलक पर दुनिया
ख़त हैं आशू के हवा में जो उडाये तूने
मौलिक व अप्रकाशित
E24
Comment
आडरणीय आशुतोष भाई , अच्छी ग़ज़ल लही आपने , दिल से बधाइयाँ आपको ।
आदरणीय श्याम नारायण जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर |
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