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हाय वो कसमे वो वादे क्यूँ भुलाये तूने

२१२२  ११२२  २१२२ २२ /११२ 

हाय वो कसमे वो वादे क्यूँ भुलाये  तूने

क्या सबब रो के यूं आंसू भी बहाये  तूने

खून से लिख्खे खतों में थी मेरी जान बसी

बेरहम हो के सभी ख़त वो जलाये तूने

अपने अश्कों को बिखेरा है बना के शबनम

मुझको मालूम ये मंजर क्यूँ सजाये तूने

थम रही साँसें क़ज़ा देने लगी है दस्तक

रुख से पर गेसू न पल भर को हटाये तूने

सात जन्मों को निभाने का यूं करके वादा

इक जनम में भी नहीं वादे निभाये तूने

जिनको बादल ही समझती है फलक पर दुनिया

ख़त हैं आशू के हवा में जो उडाये तूने

मौलिक व अप्रकाशित 

E24

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Comment by गिरिराज भंडारी on June 26, 2016 at 8:39pm

आडरणीय आशुतोष भाई , अच्छी ग़ज़ल लही आपने , दिल से बधाइयाँ आपको ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 23, 2016 at 3:22pm

आदरणीय श्याम नारायण जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on June 23, 2016 at 3:07pm
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 

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