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अलग इन्सान (लघुकथा)

"बहू ,मेरी पूजा की थाली का ध्यान रखना ,वो तुम्हारी काम वाली है न ,शकूबाई , तुम लोगो ने उसे घर की मालकिन बना रखा है , पर मेरे पूजा के कमरे से दूर रखना !  न जात का पता न धरम का, दिनभर शकूबाई , शकूबाई " बुदबुदाती दादी दुसरे कमरे में चली गई।

शकूबाई ने दरवाजे से दादी की हिदायत सुन ली  थी, वो चुपचाप सिर  नीचे किये, बाहर के मेनगेट को  साफ़ करने लग गई।  तभी फूल वाला,माला लेकर आया, और शकूबाई के हाथो मे माला थमा कर चला गया। दादी पूजा की थाली लेकर मन्दिर जाने के लिये  पोते के साथ बाहर निकली और बोली 

"अरे अभी तक  फूल वाला , माला नहीं देकर गया" ?

तभी दादी की निगाह शकूबाई पर पडी जो माला लिये खड़ी थी।  उसके हाथ में माला देख दादी आग बबूला हो गई।
"सब अपवित्र कर दिया, इसके हाथ की माला, भगवान कैसे स्वीकार करेगे "?

शकूबाई ने माला हाथ पीछे कर छिपाने का प्रयास किया ,तभी एक गाय ने माला झपट ली और देखते ही देखते पूरी माला खा गई।  यह देख पोते ने दादी से कहा:

"दादी आप तो कहती है, की गाय में ३३ करोड़ देवता निवास करते है , जब उन्हें इस माला से परहेज नही ,तो आपके मंदिर वाले भगवान को क्यों ? वो
अलग है क्या?
दादी ने कहा "नही बेटा वो तो अलग नहीं है पर  हम इन्सान अलग अलग हो गये।"

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Rajendra kumar dubey on June 24, 2016 at 9:12am
आदरणीय डॅाआशुतोष जी आदरणीय प्रतिभा पान्डेय जीआपने रचना की सराहना कर मुझे प्रोत्साहित किया इस हेतु आपका हृदय से धन्यवाद।
Comment by pratibha pande on June 23, 2016 at 6:42pm

 अंध विश्वासों में तंज कसती हुई अच्छी कथा बनी है आपकी हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 23, 2016 at 3:59pm

आदरणीय राजेंद्र जी ..आपकी लघु कथा में बहुत ही सार्थक सन्देश छुपा है ..इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादr

Comment by Rajendra kumar dubey on June 22, 2016 at 1:36pm
आदरणीय पवन जैन जी आपके प्रोत्साहन के लिए हृदय से धन्यवाद
Comment by Pawan Jain on June 22, 2016 at 12:40pm

बहुत बढ़िया कथा आदरणीय ,बधाई ।

Comment by Rajendra kumar dubey on June 21, 2016 at 8:49pm
आदरणीय डॅा विजय शंकर जी कहानी आपको पसंद आई।आपका बहुत बहुत आभार।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 21, 2016 at 6:55pm
आदमी को आदमी से सम्भवतः अहम और वहां ही बांटता है , बधाई , इस रचना पर , आदरणीय राजेन्द्र कुमार दुबे जी , सादर।
Comment by Rajendra kumar dubey on June 21, 2016 at 6:02pm
आदरणीय उस्मानी जी आपने कहानी की सराहना की इसके लिए हृदय से धन्यवाद आपकी हिदायत का आगामी रचना में पूर्ण ध्यान रखूंगा।
Comment by Rajendra kumar dubey on June 21, 2016 at 5:57pm
आदरणीय तेज वीर सिंह जी आदरणीय वर्मा जी आपके प्रोत्साहन के लिए हृदय से धन्यवाद
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 21, 2016 at 4:08pm
सच्ची घटना जैसी बढ़िया संदेश वाहक रचना के लिए तहे दिल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय राजेन्द्र कुमार दुबे जी। अंतिम संवाद यदि शकूबाई के मुख से कहलवाते, तो पंचपंक्ति अधिक प्रभावी हो जाती।

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