एक वैचारिक रचना --'' भीड़ ''
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व्यक्तियों के समूह को भीड़ कह लें
अलग अलग मान्यताओं के व्यक्तियों का एक समूह
जो स्वाभाविक भी है
क्योंकि मान्यता व्यक्तिगत है
पर भीड़ विवेक हीन होती है
क्योंकि विवेक सामोहिक नही होता
ये व्यक्तिगत होता है
हाँ , समूह का उद्देश्य एक हो सकता है , पर
प्रश्न ये है कि क्या है वह उद्देश्य ?
भीड़ हाँकी जाती है
भेड़ों की तरह
गरड़िये के द्वारा , अपने किसी उद्देश्य के लिये
और गरड़िया कोई भी बन सकता है
आप भी, मै भी
बस चार भेंड़ों की ज़रूरत है
व्यक्ति भी अपने आप मे अविवेकी हो सकता है
पर यही कमी , खासियत मानी जाती है
भेड़ बन जाने के लिये
बन चुके हैं कितने ही ,
अब भी बन रहे हैं और बनते रहेंगे
क्योंकि अविवेकी बनने के फायदे बहुत हैं
और उसपे करेले पर नीम
विवेकी होने के नुक्सान भी कम नही हैं
सम्भावना तो ये भी है कि ,
आज के भेंड़ कल गरड़िया भी जायें
भेड़ से गरड़िये मे रूपांतरण संभव है
फिर कौन नुक्सान उठाये
है न ?
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अशोक भाई , रचना के सराहना और सहमति के लिए आपका हार्दिक आभार । आपकी सलाह के विषय मे विचार कर रहा हूँ आदरणीय , क्यों कि अविवेकी हो सकता है कहने से मेरा मतलब ये है कि हर आदमी अविवेकी नही होता , कोई हो भी सकता है । मुझे इसलिये सकता कहना ठीक लग रहा है ।
और करेले पर नीम , कहावत के रूप मे नही लिखा हूँ , बस एक सच बता रहा हूँ , इस्लिये पूरा नही लिखा । अभी सोच रहा हूँ , और अन्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा भी है ।
आदरणीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।
आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब सादर, आपने जो कहना चाहा है उसको हमारे यहाँ कहते हैं 'एडे बनके पड़े खाना' सच है आज के दौर में ऐसे बहुत लोग मिल जायेंगे. सुंदर प्रस्तुति हुई है. फिरभी "व्यक्ति भी अपने आप मे अविवेकी हो सकता है
पर यही कमी , खासियत मानी जाती है
भेड़ बन जाने के लिये" ..........यहाँ 'सकता' शब्द का प्रयोग सही नहीं लग रहा है.
"और उसपे करेले पर नीम" मुहावरा है नीम चढ़ा करेला. सादर.
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति आज के माहौल पर अच्छा तंज किया है |बहुत बहुत बधाई आद० गिरिराज जी |
आदरणीय आशुतोष भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय गिरिराज भाईसाब इस चितन प्रधान रचना के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ
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