अन्तर कितना हो गया, कौमें नहीं करीब
पहला छोर अमीर तो, अन्तिम छोर गरीब |६|
शुद्ध भाव से सीखते, कपटीपन का पाठ
बिना भ्रष्ट आचार के.नहीं राजसी ठाठ |७|
जनता हित के नाम से, नेता करते काम
पेटी भरते स्वयं की, ले भारत का नाम |८|
काला धन सोने नहीं, देता सुख की नींद
कर भरकर ईमान से, हँसो मनाओ ईद |९|
रख कर 'काली' सम्पदा, किया भ्रष्ट ईमान
सब जनता मानते उन्हें,,कलियुग का भगवान् |१०
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आपका प्रयास मुग्ध कर रहा है आदरणीय कालीपद जी. हार्दिक् धन्यवाद एवं अशेष बधाइयाँ. आदरणीय गोपाल नारायनजी ने जो सुझाव दिया है उस्की ओर ध्यान दीजियेगा. यह अवश्य है कि दोहे का विषम चरण रगण या वाचिक रगणात्मक रखें. प्रयास यही हो. वर्ना छन्दों के अभिन्न अंग ’गेयता’ (विशिष्ट प्रवाह) से रचनाएँ वंचित हो जाया करती हैं. इस हिसाब से ’स्वयं की’ से किसी विषम चरण का समापन बहुत अच्छा सुझाव नहीं है. यह मेरा निवेदन मात्र है. वैसे भी दोहा और दोहरा छन्दों में अन्तर हुआ करता है. इसके प्रति हम भी सचेत रहें.
दूसरे, दोहा छन्द की पंक्तियों में कुल मात्राओं के अलावा प्रयुक्त हुए शब्दों के लिए विशेष संयोजन हुआ करता है. उसके प्रति भी जागरुक रहना ज़रूरी है.
सादर
आ. अशोक कुमार जी, "राजसी ठाट बाठ " मात्रा संयोजन में बैठ नहीं रहा था,लेकिन तुरंत कुछ सुझा नहीं | अब ठीक कर लिया | बाकि सलाह पर भी ध्यान दिया |
हार्दिक आभार |
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी , ध्यान से पढने, खामियों को सुधारने के लिए तहे दिल से धन्यवाद | " राजसी ठाट बाठ '" शब्द संयोजान ने नहीं बैठ रहा था ,दूसरा सूझ नहीं रहा था | आपने ठीक कर दिया | लेकिन एक बात और मैं अपना ज्ञान वृद्धि के लिए पूछना चाहत हूँ ,वह इस प्रकार है
होय भ्रष्ट ईमान / भ्रष्ट किया ईमान
२१ / २१/ २/२१, २१/ १२/ २/२१ पहले का और परिवर्तित, दोनों में मात्रा संयोजन एक जैसा है ,फिर अंतर क्या है ? समझ में नहीं आया | कृपया इस पर रौशनी डालें |
सादर
आआ० कालीपद जी , दोहे की रचना विधि ओ बी ओ समूह में है कृपया उसका अध्ययन कर ले . मैं आपके दोहों का संस्कार करने का प्रयास करता हूँ .-
शुद्ध भाव से सीखते, कपटीपन का पाठ
बिना भ्रष्ट आचार के नहीं राजसी ठाट |७|
जनता हित के नाम से, नेता करते काम
पेटी भरते स्वयं की , ले भारत का नाम |८|
सोना काला धन नहीं, देते सुख की नींद
कर भरकर ईमान से, हँसो मनाओ ईद |९|
रख कर काली' सम्पदा, भ्रष्ट किया ईमान
सब जनता समझे उन्हें, कलयुग का भगवान |१०---------------क्षमा सहित , सादर .
अन्तर कितना हो गया, कौमें नहीं करीब
पहला छोर अमीर तो, अन्तिम छोर गरीब |६|......सुंदर.
आदरणीय कालीपद प्रसाद मंडल जी सादर, अच्छे दोहे रचे हैं किन्तु फिरभी शब्द संयोजन की कुछ कमियाँ नजर आ रही हैं. देख लें.
राजसी ठाट बाठ........गेयता नहीं है.
नींद/ईद और ईमान/बेईमान जैसे तुक विचारणीय हैं.सादर.
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