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दोहे !

डायन महँगाई  करे, पिया को परेशान

काट छाँट हर चीज़ में, कम हुआ खान -पान

खमा बहादुर ही करे, कायर का क्या काम

क्रोध घृणा की भावना, खुद को करे तमाम |

   

रस्सी खोलो मोह की, फिर देखो  संसार   

भौतिक धन दौलत सभी, दुनियाँ निरा असार |

चिंता छोड़ जहान की, चिन्तन कर भगवान

चिन्ता मन का रोग है, चिन्ता चिता समान

ज्योत जलाकर  ज्ञान की, रोशन कर तू राह 

राह नहीं चलना सरल, आँधार है अथाह  

मौलिक एवं अप्रकाशित    

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Comment

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Comment by Kalipad Prasad Mandal on July 26, 2016 at 10:26pm

आदरणीय गिरिराज जी , प्रोत्साहन किये आपका आभार |

आ श्याम नारायण वर्मा जी एवं  आ सुरेश कुमार जी, ब्लॉग पर आने एवं हौसला बढाने लिए धन्यवाद |

Comment by Kalipad Prasad Mandal on July 26, 2016 at 10:21pm

आदरनीय अशोक रक्ताले जी ,प्रत्येक दोहा को बारिकी से देखने और खामियों को बताने केलिए, साथ में हौसला बढाने के लिए हार्दिक धन्यवाद | खमा , क्षमा शब्द का अपभ्रंस है | ग्रामीण इलाके में बोला जाता है | यहाँ "क्षमा ' भी लिख सकते हैं ,कोई अंतर नहीं पडेगा |

.....दुनिया निरा असार .....जिसने मोह छोड़ दिया ,उसके लिए धन दौलत पूरी दुनियाँ बिलकुल तत्त्व हीन है 

---ज्योत जला कर ज्ञान की ...लिखा था कापी में  

आगे भी आपसे इसी प्रकार की सहयोग की आशा करता हूँ 

आंधार  के ऊपर चंद्रविन्दु है ,अनुस्वार नहीं ,परन्तु गूगल फॉण्ट में आ नही रहां है | उसको 'अँधेरा ' कर सकते है ,तब २२१ के बदले १२२ हो रहा है , मात्रा संयोजन  में ४/४/३ या ३/३/२/३  में नहीं बैठ रहा है |

सादर 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on July 26, 2016 at 8:22pm
खमा=क्षमा
शायद आदरणीय कालीपद जी यही कहना चाहते हैं ।

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Comment by गिरिराज भंडारी on July 26, 2016 at 5:34pm

आदरणीय काली पद भाई , अच्छे दोहे रचे आपने , हार्दिक बधाइयाँ । कमियों की तरफ आ. अशोक भाई इंगित कर ही चुके हैं ।

Comment by Shyam Narain Verma on July 26, 2016 at 12:03pm
सुंदर भाव से संजोयी रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय, सादर
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 25, 2016 at 10:14pm

आदरणीय कालीपद प्रसाद मंडल जी सादर, सुंदर प्रयास हुआ है दोहों पर.फिर भी

प्रथम दोहे के दोनों ही सम चरणों का शब्द  चयन संयोजन सही नहीं होने से गेयता बाधित हो रही है.

खमा बहादुर ही करे, कायर का क्या काम

क्रोध घृणा की भावना, खुद को करे तमाम |............शिल्प सुंदर  है. "खमा" का मतलब मुझे नहीं मालूम.

रस्सी खोलो मोह की, फिर देखो  संसार   

भौतिक धन दौलत सभी, दुनियाँ निरा असार |...............सुंदर है. तुक साफ़ नहीं है.

चिंता छोड़ जहान की, चिन्तन कर भगवान

चिन्ता मन का रोग है, चिन्ता चिता समान............अच्छा है.

ज्योत जलाओ ज्ञान का, रोशन कर तू राह..............ज्योत जलाओ ज्ञान का/की, ......इसके साथ सम चरण में 'तू' नहीं आ सकता.

राह नहीं चलना सरल,  आंधार है अथाह ..............'आंधार'.....शायद सही शब्द नहीं है. सादर.

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