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अपनी-अपनी ग़रीबी (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

लकड़ियों और बल्लियों का इंतज़ाम हो चुका था। बस कुछ खपरैल की प्रतीक्षा में रामदीन की टपरिया की मरम्मत का काम रुका हुआ था। पैसों की जुगाड़ के बारे में सोचते हुए रामदीन बीड़ी सुलगा ही रहा था कि उसके बूढ़े पिता बुधैया ने तेज़ आवाज़ में कहा- "अरे, मुनियां को इहां बुला लो! अमीरों के शौक़ मत दिखाओ मोड़ी को!"

रामदीन ने देखा कि अपने 'अच्छे' वाले कपड़े पहने मुनियां लकड़ियों के ढेर पर चढ़कर फार्म-हाउस (खेत) के दूसरी तरफ़ मालिक के परिवार की चल रही पार्टी और शोर-शराबे के मज़े ले रही थी। गाना-बजाना और नाच-गाना उसका मन मोह रहा था। उसने मुनियां का हाथ खींचते हुए उसे बुधैया के पास बिठा दिया।

"देख मुनियां वहां जो हो रहा है न, वो सब वे अपनी ग़रीबी भूलने के लिए किया करते हैं! जो हमारे पास है, वो उनके पास नहीं!" -बुधैया ने मुनियां के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।

"उनकी ग़रीबी! लेकिन वे तो अमीर हैं!" मुनियां ने आश्चर्य से पूछा।

"बिट्टी, हमारे पास संतोष और ईमान की दौलत है जो उनके पास नहीं! बाबूजी सही कह रहे हैं । कुछ मायनों में वे ग़रीब हैं और कुछ मायनों में हम अमीर हैं!"-रामदीन ने उसको जवाब देते हुए कहा-"तू तो बस पढ़ाई में मन लगा, अगर तेरा मन उनके तौर-तरीक़ों पर ललचाया, तो तू भी असंतोष की ग़रीबी से घिर जायेगी!"

मुनियां अपनी टपरिया को निहारने लगी।

"हमारी टपरिया वे नहीं सुधरवा सकते बेटा, उनके ख़ुद के छप्पर में ढेरों सूराख़ हैं!" बुधैया ने पोती को गोदी मे बिठाकर कहा!


[मौलिक व अप्रकाशित]

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 18, 2016 at 4:03pm
इस रचना के अनुमोदन व स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्र जी, व आदरणीय आशीष कुमार त्रिवेदी जी।
Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on August 8, 2016 at 11:07am

बहुत सुन्दर प्रेरणादायक कथा

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 1, 2016 at 2:52pm
आदरणीय शेख जी अच्छा सन्देश और अच्छी नसीहत देती इस अति उत्तम लघु कथा के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर बधाई के साथ
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 31, 2016 at 8:38am
रचना पर समय देकर प्रथम प्रोत्साहक टिप्पणी करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया कल्पना भट्ट जी।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 31, 2016 at 7:31am
सही है खुद में सुधार जरुरी है । बहुत बढ़िया आदरणीय शहज़ाद भाई । हार्दिक बधाई ।

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