22 22 22 22 22 22 बहरे मीर
फोकट की ये बातें हमको मत गिनवाओ
नकली उख़ड़ी सांसें, हमको मत गिनवाओ
खंज़र वाले हाथ कभी काँपे क्या उनके ?
आज हुई प्रतिघातें, हमको मत गिनवाओ
वर्षों से सूरज का ख़्वाब दिखाते आये
अब तो काली रातें हमको मत गिनवाओ
शहर शहर को तोड़ तोड़ के गाँव करो तुम
बची खुची चौपालें हमको मत गिनवाओ
फुलवारी के बीच बनी थी हर पगडंडी
कोलतार की सड़कें हमको मत गिनवाओ
क्षितिज छू रहीं बाहों का विस्तार कहाँ है
सिमटी लूली बाहें , हमको मत गिनवाओ
कहीं शरारे दौड़ न जायें फिर नस नस में
इतिहासों की घातें ,हमको मत गिनवाओ
प्यासे को तो रोज़ चाहिये पानी यारो
मरु थल में सौगातें, हमको मत गिनवाओ
सरहद पार के झूठे रिश्ते आम हो गये
अब तो उनकी चाहें हमको मत गिनवाओ
***************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय श्याम नाराइन भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें । सादर |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online