For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धंधे का उसूल(लघुकथा)राहिला

एक भिखारी के झोपड़े में आग क्या लग गयी,सारी मीडिया मछों की तरह भिनभिन करती मौका-ए-वारदात पर पहुँच गयी ।ये एक सामान्य आगजनी की घटना हो सकती थी ,लेकिन उस झोपड़े से जो जले हुए नोटों के बोरे के बोरे बरामद हुए ,ये खास खबर थी ।अब इस घटना को किस तरह सारे दिन की खबर बनाना है इसकी कबायत में मीडिया बाल की खाल निकल रही थी।
"बाबा!भीख मांग ,मांग कर करोड़ों रुपये जमा किये।और आज उनमें आग लग गयी।इससे तो अच्छा होता आप इन रुपयों का भरपूर उपयोग कर लेते।अच्छा खाते ,अच्छा पहनते।"
"आपके कहने का मतलब है हम अपना धंधा चौपट कर लेते?अरे बाई साहब!हर धंधे का अपना उसूल होता है।अगर हम अच्छा खाते ,अच्छा पहनते तो कौन उल्लू का पठ्ठा हमें भीख देता ?"वो तनिक झुंझला के बोला।
"तो भीख मांगने की जरूरत ही क्या थी?इतना क्या काफी नही था।"वो जले नोटों की ओर इशारा करके बोली।
"ये कितने दिन तक चलता?"उल्टा भिखारी ने सवाल दागा।
"ओह...!तो ये कम है आपकी नज़र में!"
"अरे बाई साहब!निठल्ले बैठ कर जमा पूँजी खाने से तो कुबैर का खज़ाना भी खाली हो जाता ।ये तो चंद बोरे थे।"
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1278

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on August 7, 2016 at 9:31pm
आदरणीय अशोक सर जी! आपको रचना पर उपस्थित देख ,बहुत प्रसन्नता हुयी ।आपको रचना अच्छी लगी ।मेरा लेखन सार्थक हुआ ।सादर नमन
Comment by Rahila on August 7, 2016 at 9:28pm
बहुत, बहुत शुक्रिया आदरणीय दुबे सर जी इस प्यारी सी टिप्पणी के लिए। सादरनमन
Comment by Ashok Kumar Raktale on August 7, 2016 at 5:15pm

वाह ! वाह ! बहुत सुंदर लघुकथा हुई है आदरणीया राहिला जी. सच है नोटों की भूख कभी न ख़त्म होने वाली होती है. बहुत-बहुत बधाई.सादर.

Comment by Rahila on August 7, 2016 at 12:46pm
आदरणीया नीता दीदी!खूब, खूब आभार रचना को समय देने के लिए।अब क्या बदलूँ "मछों" को अब तक तो सब परिचित हो गए इस शब्द से ।हा हा हा ।सादर
Comment by Rahila on August 7, 2016 at 12:43pm
बहुत, बहुत आभार आदरणीय सुशील सर जी!आपको रचना अच्छी लगी ,मेरा सौभाग्य।सादर नमन
Comment by Rajendra kumar dubey on August 7, 2016 at 7:01am
मिडीया की मधु मक्खी झोपडी में ढूंढ रही थीं पर वो शहद तो आप अपनी लघुकथा में ले आये थे।आदरणीय राहीला जी आपको बहुत बहुत बधाई।
Comment by Nita Kasar on August 6, 2016 at 8:56pm
हर धंधे का उसूल होता है,सौ टके की बात है,उस भिखारी की दूरदर्शिता भी यहाँ साबित हो गईअंतिम पंक्ति ने कथा में जान फूँक दी,बधाई आद०राहिला जी,मछो को मधुमक्खियों को कर लें,पाठकों को शब्द समझनें मे सहूलियत होगी,सादर।
Comment by Sushil Sarna on August 6, 2016 at 8:25pm

बहुत सुंदर और संदेशप्रद लघुकथा का सृजन हुआ है आदरणीया राहिल जी। इसकी पंच लाइन ''अरे बाई साहब!निठल्ले बैठ कर जमा पूँजी खाने से तो कुबैर का खज़ाना भी खाली हो जाता ।ये तो चंद बोरे थे।" में कथा का सार और नसीहत छुपी हुई है।  हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Rahila on August 6, 2016 at 7:38pm
बहुत शुक्रिया आदरणीया प्रतिभा दीदी !इतनी सुंदर टिप्पणी के लिए ।सादर
Comment by Rahila on August 6, 2016 at 7:37pm
बहुत, बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश दीदी!नहीं दीदी! ये रचना तकरीबन साल भर पहले की है ।उस वक़्त ये भोपाल में घटित हुयी थी।सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service