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फ़ोकट का तमाशा {लघु कथा}

आज फिर कामिनी बाहर गली में आकर चिल्ला रही थी 'कोई भी नही बचेगा, सब को सजा मिलेगी. कानून किसी को नही छोड़ेगा.' सभी अपने अपने घरों से झांक रहे थे. उसका भाई इंदर उसे समझा बुझा कर भीतर ले जाने का प्रयास कर रहा था.

अपनी बहन की इस दशा से वह बहुत दुखी था. बड़ी मुश्किल से समझा बुझा कर वह उसे भीतर ले गया. कुछ देर तक अपने अपने घरों से बाहर झांकने के बाद सब भीतर चले गए.

कभी कामिनी भी एक सामान्य लड़की थी. एक कंपनी में नौकरी करती थी. कुछ ही समय में विवाह होने वाला था. अपने आने वाले भविष्य को लेकर वह बहुत खुश थी. उसका होने वाला पति एक अच्छी नौकरी में था. परिवार भी बहुत अच्छा था. अतः वह आने वाले दिनों के सुखद स्वप्न देखने लगी थी.

किंतु उसके सारे सपने बिखर गए. एक दिन जब वह दफ्तर से घर लौट रही थी तब कुछ रईसजादों ने उसे जबरन अपनी कार में बिठा लिया. रात भर उसे नोचने खसोटने के बाद सड़क पर फेंक दिया. लड़के वालों ने विवाह से इंकार कर दिया.

इतने पर भी उसने हिम्मत नही हारी. अपने भाई इंदर के साथ मिलकर कानूनी लड़ाई के ज़रिए इंसाफ पाने का प्रयास किया. पुलिस स्टेशन के चक्कर मेडिकल जांच उसके बाद कोर्ट में प्रतिपक्षी वकील के भद्दे सवाल कुछ भी उसके हौंसले को तोड़ नही सका. लेकिन वह लड़के रसूखदार खानदानों के थे. पैसे की ताकत ने साबित कर दिया कि घटना के समय कोई शहर में नही था. सब बाइज़्ज़त बरी हो गए.

कामिनी यह आघात सह नही पाई. वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठी. अब अक्सर वह इस तरह चीखने चिल्लाने लगती थी.

मोहल्ले वालों के लिए यह आए दिन का तमाशा था. किंतु कामिनी के लिए यह उसके मन की व्यथा थी.

प्रस्तुत रचना मौलिक व अप्रकाशित  है 

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 21, 2016 at 7:58pm
समसामयिक परिदृश्य से कथानक लेते हुए गंभीर मुद्दा उठाया है आपने। बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय आशीष कुमार त्रिवेदी जी इस बढ़िया प्रस्तुति के लिए। अपने टिप्पणी अभ्यास के तहत कुछ सुझाव देना चाहता हूँ-1- यह पंक्ति आगे भाव पुनरावृत्ति के कारण हटायी जा सकती है- // उसका भाई इंदर उसे समझा बुझा कर भीतर ले जाने का प्रयास कर रहा था.//, 2- फ्लैशबैक तकनीक को स्पष्ट करने के लिए 'कभी कामिनी भी' वाले वाक्य के पहले लिखा जा सकता है कि भाई अपनी बहन के अतीत को याद करता हुआ बहुत भावुक हो गया-....3- अंत में शीर्षक वाली पंक्ति के बजाय किसी का कोई तीखा तंज करता संवाद रखा जा सकता है।
Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on August 12, 2016 at 10:33am

धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 11, 2016 at 12:13pm

आदरनीय कभी ये बात काल्प्निक भी रही होगी , अब तो हर समय के लिये सामयिक हो गई है । अच्छी कथा कही , हार्दिक बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 11, 2016 at 11:41am
कानून तो बिकाऊ है न जाने कितनी कामिनी इंसाफ के लिये लड़ते लड़ते मर गई अच्छी सामयिक कहानी है इसका अंत किसी सार्थक संदेश के साथ पंच लाइन को लेकर होता तो औऱ बेहतर होती बहुत बहुत बधाई आपको.

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