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निज स्वामित्व - हवेली (लघुकथा)

विषय आधारित -निज स्वामित्व
हवेली
मुरारी लालजी जी हवेली पुरे कस्बे में मशहूर थी । कोई भी कस्बे में कोई भी कहीं आता तो इस हवेली को देखने से न चुकता । इस भव्य हवेली के मालिक मुरारी लालजी के लिए तरह तरह की बाते होती थी । कोई कहता पुराना डकैत है , कोई कहता बाप दादाओ का दिया है । पर वे अपने ही मिजाज के व्यक्ति थे । घर में उनके 6 बेटे और पत्नी सहित और भी लोग रहते थे । धीरे धीरे सब एक एक कर इस घर को छोड़ कर चल दिए । " यह इस तरह से हँसने की आवाज़े कहाँ से आती है ? किसीने वहाँ रहने वाले व्यक्ति से पूछा ।
"वो क्या है न बाबूजी , उस हवेली के मालिक को नशा हो गया था और इसी के चलते निज स्वामित्व के अहंकार वाले अजगर ने पूरी हवेली को निगल लिया । "

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 12, 2016 at 11:48pm
धन्यवाद आदरणीय राहिला जी ।
Comment by Rahila on August 12, 2016 at 9:55pm
बहुत गहरी बात कह गयी आपकी रचना आदरणीया दीदी!ख़ूब बधाई ।सादर
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 11, 2016 at 9:07pm
धन्यवाद आदरणीय आशीष कुमार जी ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 11, 2016 at 9:07pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सहज़ाद भाई ।
Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on August 11, 2016 at 8:09pm
संपत्ति पर स्वामित्व का जुनून तन्हा कर देता है.
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 9, 2016 at 7:28pm
आपकी एक और बढ़िया प्रस्तुति। रचना शैली में गंभीरता बढ़ रही है। सादर हार्दिक बधाई आपको आदरणीया कल्पना भट्ट जी।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 9, 2016 at 5:33pm
धन्यवाद सर ।

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