For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

KALPANA BHATT ('रौनक़')'s Blog (122)

डर के आगे (लघुकथा)

. पिंकी के बारे में उसको यह पता चला था कि वह बहुत बीमार रही और काफ़ी समय तक अस्पताल में रही। उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था परंतु जब पिंकी को स्कूल में देखा तो वह चहक उठी। वह पिंकी से लिपट गयी और कुछ पूछने को थी कि पिंकी ने जमकर उसका हाथ पकड़ लिया। पूरे दिन दोनों में से कोई न बोला। स्कूल खत्म होने पर दोनों एक साथ हाथ पकड़ कर बाहर निकले तब पिंकी के पापा-मम्मी को उनकी कार में खड़े पाया। चुप्पी तोड़ते हुए पिंकी ने धीरे से कहा, "घर चलोगी?" तान्या ने पिंकी की मम्मी से उनका मोबाइल माँगा और कॉल लगाया। इस…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 26, 2023 at 1:49pm — 2 Comments

एहसास (कविता)

बदलते मौसम-से बदल गए 

बढाते हुए कदम और आगे बढ़ गए 

कौन कहता है कि हरजाई हो 

बदलना था तुमको और तुम बदल गए|

छूट गए गलियारे कितने ही! 

रूठ गए सुखद पल उतने ही 

अब बहार आये लगता नहीं है 

 क्यारियाँ महके लगता नहीं है| 

नहीं! नहीं! कुछ अलग नहीं हुआ है 

दुनिया का दस्तूर ही तो निभाया है 

भावनाओं का कुचलना स्वाभाविक था 

यूँ कदम-तले रौंद देना ही ठीक था | 

खुश हैं गलियारे तुम्हारे करीब…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 17, 2023 at 6:35pm — No Comments

गाँव की धरती (कविता)

गाँव की धरती

गाँव की छवि अति निराली

शहर से छटा उसकी है न्यारी

गगनचुंबी से मुक्त धरा है होती

खुले आकाश सँग बातें ज्यादा है होती ।

सुबह सवेरे गाय बैल जगाते

दुग्ध धोने अपने ग्वाल को पुकारते

रुनझुन करती आती श्यामा

खुश हो जाती घर में दादी माँ

हल लेकर खेतो को निकलते

मेहनतकश पुरुष पसीना बहाते

बरगद नीम की छाँव तले बैठकर

खाते रोटी अचार चटनी प्याज मिलकर

हँसी ठट्ठा औ कोलाहल होता

हर घर से अपनापन है मिलता

सब कोई चाचा…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 27, 2022 at 10:26pm — 8 Comments

भविष्य निधि (लघुकथा)

                                                    एक सर्वेक्षण-कर्ता की डायरी 

दिनांक :- ३० अक्तूबर, २०२१  

बॉस ने ‘वर्तमान ऑनलाइन शिक्षा-प्रणाली की सार्थकता और उपयोगिता’ पर  सर्वेक्षण कर अगले वर्ष के फ़रवरी माह तक रिपोर्ट जमा  करने हेतु कहा है|”

दिनांक:- ४ नवम्बर, २०२१.

तय किया है कि उपर्युक्त विषय हेतु मैं वरिष्ठ-नागरिकों, बच्चों के अभिभावक, युवा वर्ग, एवं बच्चों से मिलूँगा…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 9, 2022 at 5:00pm — 1 Comment

अंतिम इच्छा (लघुकथा)



एक शव को गिद्ध कौओं द्वारा नोचते खसोटते देख करीब पड़े एक बूढ़े बीमार कुत्ते से न रहा गया और उसने उनसे कहा ,"अरे!अरे! इतनी बेदर्दी से इसको क्यों नोच-खसोट रहे हो। थोड़ा आराम से खाओ न । अब यह कौन-सा उठने वाला है?"

गिद्ध ने अपना आहार खाते हुए कहा,"आओ! तुम भी चखो,इसका माँस बहुत ही स्वादिष्ट है...।"

कौओं के समूह से एक कौए ने कहा," अहा! मैंने भी ऐसा स्वदिष्ट माँस पहले कभी नहीं खाया...।"

बूढ़े कुत्ते ने अपने अगल-बगल देखा, उसको अपनी बिरादरी का कोई भी सदस्य कहीं नज़र नहीं आया। उसका शरीर…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 12, 2021 at 3:28pm — 3 Comments

नन्हा गुलाब कह रहा है (कविता)

नन्हा गुलाब  कर रहा विनंती 

जीवन दान मुझे,  तुम दे दो  

खिलने दो मुझको भी पूरा 

बस इतना सा वरदान तुम दे दो | 

वो देखो उस नन्ही चिड़िया को 

उसको उड़ते हुए देखना है मुझको 

अभी तो है वह घोंसले में अपने 

रहने दो अपनी क्यारी में मुझको | 

वो देखो रंग-बी-रंगी तितली को 

गुंजन कर रहा भँवरा भी सुन लो

क्यों तोड़ लेते हो हम सब को 

जीवन हमको हमारा तुम दे दो | 

नहीं लिखवाया अमरपट्टा कोई…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 30, 2020 at 4:49pm — 4 Comments

नौ दो ग्यारह ...(लघुकथा)

" काल सुबह कु तैयार हो जाना! हमलोगा को लेने बस आवेगी।"

" किधर कु जाना है? मुकादम जी!" 

" अरे! उवा पिछली बेर गए थे न, मकान बनाने..."

" ओह! उधर कु तो मेरी लुगाई नही जावेगी।"

"कीयों?"

" बस ! मेरी मरजी... मेरी लुगाई है ... वो हरामी ठेकेदार और वाके आदमी... मेरी लुगाई पर..."

"अबे साले! तू क्या खुद को सलमान खान समझता है? तेरी लुगाई को संग लाना होगो वरना..." मुकादम ने जर्दा थूकते हुए अपने करीब खड़े अपने दोस्त से कहा," साला! हरामी! समझता नही यह, इसको…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 7, 2020 at 12:20pm — No Comments

एल.ओ.सी (लघुकथा)

रविवार सवेरे 7:00 बजे।
चाय की पहली चुस्की ली ही थी कि अखबार में छपे एक चित्र ने ध्यान खींच लिया। एक आँख जिसमें खुली पलकों के नीचे पुतली की बजाय सलाखें थी और उन सलाखों को एक हाथ ने थाम रखा था। कितने ही क्षण मैं हाथ में कप लिए उस चित्र को एकटक देखता रहा। इच्छाओं से जुड़े सपनों को कितनी ही बार सलाखों के पीछे बंद कर दिया जाता है।
सवेरे 9:00 बजे।
नाश्ता नहीं खा पाया, वही चित्र आँखों के सामने घूम रहा है। बचपन से नौकर-चाकरों और केअर टेकर के साथ ही रहा। डैडी  को…
Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 18, 2019 at 11:22pm — 3 Comments

माँ (कविता)

माँ! तुम हो शक्ति स्वरूपा

न पाया तुमसा कोई दूजा

समय से भी तुमने की लड़ाई

हर बार समय को आँख दिखाई

नन्हीं नन्हीं क्यारियों में तुमने

प्यार-मुहब्बत के बीज जो बोये

अपने प्यार से सींचा है तुमने

घर-आँगन महकाया है तुमने

माँ तुमसा और न कोई देखा

हर दुःख को तुमने हँसते हुए फेंका

हर बार जब भी मैं घबरायी

सामने तुम ही तुम नज़र आई

कैसा डर! यह पूछा जब तुमने

नारी शक्ति से परिचय करवाया तुमने

आज जो भी कुछ है मैंने पाया

संग मेरे रहा तुम्हारा… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 12, 2019 at 9:52am — 5 Comments

फ्रोज़न माइंड ( लघुकथा)

अस्पताल में एक रूम में बैठी हुई थी। तभी एक नर्स दौड़ती हुई आई और कहने लगी, " मिस्टर सुदर्शन के साथ कौन है?"

काव्या के कान चौकन्ने हो गए, उसने उस नर्स से कहा," जी मैं हूँ। क्या बात है सिस्टर?"

"आई.सी.यू. में आपको तुरंत बुलाया है...।

नर्स की बात पूरी भी नही हुई और काव्या चीते की गति से उस ओर दौड़ पड़ी।

आई.सी. यू. का दरवाजा खोलते ही उसने कमरे में चारों तरफ नज़र घुमाई, उसके पिताजी पिछले एक माह से कोमा में थे, डॉक्टरों ने फिर भी उम्मीद नही छोड़ी थी। उसने डॉक्टर की तरफ देखते हुए पूछा,"… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 1, 2019 at 8:14pm — 6 Comments

ज़हरीली हवा (कविता)

 यह कैसी हवा ज़हरीली,

नफ़रत से भरी

विषकन्या क्या पुनः जीवित हो उठी है

आतंकी गलियारों में

वो वहाँ ख़ूनी होली खेली किसीने

संतुष्ट हुआ होगा  क्या वह

अपने कर्तव्य को पूर्ण कर

घर जाकर क्या सुकूँ से सोया होगा!

ये कैसे धर्म ?

कैसा आचरण ?

कैसी शिक्षा ?कैसा प्रण?

मृत्यु अटल सत्य है

क़त्ल-ए-आम!

यह कैसा कृत्य है?

क्या औलाद ऐसी होती है?

जो माँ की छाती छलनी करती है

और वे माताएँ जिनकी

ऐसी…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 26, 2019 at 10:49pm — 4 Comments

अनकहा रिश्ता (लघुकथा)

9 फ़रवरी 2019

प्रिय डायरी

आज साईट पर कनक अम्मा की हालत देखकर मन भारी हो गया। तुम तो जानती ही हो, कनक अम्मा बाऊजी के समय से अपनी कम्पनी से जुड़ी है। बाऊजी को यह अन्ना दादा कहती थी। बाऊजी को तो तुमने भी देखा है, नहीँ तुम न थी उस वक़्त मेरे साथ तुम्हारी बड़ी बहन थी, मैं उससे अपनी बातें साझा किया करता था, जैसे मैं आज तुमसे करता हूँ। यह क्या मैं भटक गया... हाँ तो मैं कहाँ था। हाँ, कनक अम्मा की बात बता रहा था न मैं। आज वह रोज़ की तरह सीमेंट की तगाड़ी लेकर सीढ़ियों पर चढ़ रही थी कि वह फिसल…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 16, 2019 at 9:48am — 4 Comments

स्वावलम्बी (लघुकथा)

“अरे यार! हद्द है ये तो, अब क्या इसके हाथ का खाना पड़ेगा?”



लोकल ट्रेन में बैठे एक व्यक्ति ने कहा। एक किन्नर इडली-सांभर के डिब्बों का थैला लिए डिब्बे में घूम रहा था| उसकी आवाज़ और उसके हाव-भाव से लोग उसकी ओर आकर्षित तो हो रहे थे | पर उससे सामान कोई नहीं खरीद रहा था| एक मनचले ने कहा, “ क्यों बे हिजड़े अब हमारे ऐसे दिन आ गए हैं कि ...|”



किन्नर ने उसके प्रतिउत्तर में कहा, “ क्यों रे? क्या तू किसी और तरह का अन्न खाता है?|



मनचले ने घृणा से उसकी ओर देखा|



किन्नर… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 22, 2018 at 10:23am — 10 Comments

लहरें ( कविता)

आज लहरों ने की बातें मुझसे 

बोलीं 

तुम सोचती हो तुम हो बहादुर 

समय से तुम लडती हो 

मूर्ख हो तुम 

जो यह सोचकर दम भरती हो| 

और वह इठला कर चली गयी 

दूर 

वहीं जहाँ से वह आयीं थी 

किनारे तक 

और वहाँ पड़े चट्टानों से 

टकरा-टकरा कर रही थी 

बातें उनसे, 

कह रहे थे चट्टान उनसे 

रुक जाओ 

करीब आप मेरे ऊपर से 

न यूँ बह जाओ 

रुको कुछ घड़ी 

की हम तपते हैं 

और…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 26, 2018 at 12:00am — 9 Comments

दो धारी तलवार(लघुकथा)

"अरे सुखिया! सुन तो मन्ने एक बात सूझी हैं, तू कहे तो बताऊँ।"

"का बात सूझी है दद्दा! बताय ही द्यो। मैं तो परेसान हो गया हूँ, एक तो उ बैंक का मनजेर बाबू आज सुबह ही कह रहे थे कि जो करजवा हम लिये रही उ का ब्याज भरने को पड़ी...।"

"ह्म्म्म हम सुन लिए थे उ वा की बात, तभी तो हम आये हैं, तू एक काम कर, तू कल सरपंच से कछु उधार मांग ले, वो इंकार न करेगा, और उ पैसा से अपन का ब्याज की किश्त चुकाई दिए।"

"होउ , इ हे बात तो हमरी ख़ोपड़िया में आयी ही नही। हम कल ही सरपंच जी से बात करेंगे। पर…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 12, 2018 at 10:30am — 7 Comments

सुष्ठु दुनिया(लघुकथा)

 "ऑफ़ ओह! शीला मैं तो तंग आ गया हूँ, तुम्हारे हाथ में चौबीसों घण्टे मोबाइल को देखकर।" शीला अपनी धुन में थी, नित्यक्रम से निबट कर टी.वी. के आगे अपना मनपसन्द सीरियल देख रही थी और साथ में उसकी उँगलियॉ मोबाइल पर लगातार चल रही थी। शीला की सास, और ससुर जी भी वहीं बैठे हुए थे। वे तपाक से बोले," शेखर की माँ! मुझे तुम्हारी जवानी याद आ रही है...।" शीला के कान चौकन्ने हो गये, वह उनकी तरफ देख रही थी। ससुर जी उसके देखने का आशय समझ गये; उन्होंने कहा,"अरे उस ज़माने में यह मुआ मोबाइल -शोबाइल नहीं था, तुम्हारी…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 5, 2018 at 9:25pm — 11 Comments

बारूद का असर( लघुकथा)

कलम को चुप-चाप और उदास बैठे देख बारूद ने पूछा," क्या बात है बहन?"

"कुछ नहीँ! तुम फिर आ गए? चले क्यों नहीं जाते... कह तो दिया तुमसे अब मैं तुम्हे स्वीकार नहीं करूंगी।" गुस्से से कलम बड़बड़ाई।

" मेरे बिना तुम्हारा कोई अस्तित्व ही नहीं हैं, समझीं ! तुम्हें मेरा स्वीकार करना ही होगा।" अट्टहास लेते हुए बारूद ने अपनी अहमियत जतायी।

" नहीं कभी नहीँ ! तुम बदल गए हो अब वो बात नहीं रही, याद करो एक समय वो था जब बिस्मिल की कलम से तुमने यह लिखवाया था : सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 18, 2018 at 1:30pm — 5 Comments

पश्चाताप (लघुकथा)



"अपने पुत्र को समझाओ गांधारी। वासुदेव कृष्ण की माँग सर्वथा उचित है। 'पांडवो के लिये पाँच गाँव!' भला इससे कम और क्या हो सकता है?’’

"नहीं आर्यपुत्र, अब वह समझाने की सीमा में नहीं रहा। पानी सिर से ऊपर बहने लगा है।" गांधारी की आवाज सदैव की भांति स्थिर थी। 'मैंने आप से अनगिनित बार उसे समझाने के लिये कहा लेकिन आप के 'पुत्र-मोह' ने उसे कभी समझाना ही नहीं चाहा। परिणामतः हम जहां आ चुके है, वहां से लौटना संभव नहीँ।"

........... युद्ध की कालिमा छंट चुकी थी लेकिन सभी पुत्रों को खो चुके…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 20, 2018 at 5:17pm — 5 Comments

नारी मन (कविता)



नारी का मन

न जाने कोई

जाने गर तो

न पहचाने कोई

एक पहेली बनती नारी

हास परिहास की शिकार है नारी

नव रसों में डूबी हुई

अनोखी पर सशक्त है नारी

कौन जाने कब हुआ जन्म

श्रुष्टि रचयिता में सहभागी है नारी

हर रिश्ते में बाँधा है इसको

माँ, बहन, चाची औ मासी

पूर्ण होता संसार है इससे

अर्धनारीश्वर का रूप धरा शिव ने

नारी का सम्मान बढ़ाया

युग बदला

बदली है नारी

परम्परा से आधुनिकता की राह पर

आज देखो चल पड़ी है नारी

कदम कदम पर…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 8, 2018 at 11:07am — 11 Comments

राजनीति की औकात (लघुकथा)

लव कुश के मुख से रामायण का गान सुनकर लोग अचंभित थे। लोगों में बातचीत हो रही थी," अयोध्या का और श्री राम चरित का वर्णन बहुत सुन्दर किया है।"

श्री राम दरबार में सीता जी के वनवास जाने के दृष्टान्त में लोगों की आँखों से झर झर आँसू बहने लगे।

इस वृत्तांत को सुनाते हुए लव और कुश के चेहरे पर क्रोध झलक रहा था।

किसीने पूछा,"बेटा तुम क्रोधित क्यों हुए?"

लव ने प्रतिप्रश्न किया ," ये कैसा न्याय कि किसी व्यक्ति के शक करने पर राजा ने रानी को देश से निष्कासित कर दिया.....!"

सब के झुके… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 1, 2018 at 8:24am — 13 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
8 hours ago
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
13 hours ago
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
Wednesday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
Wednesday
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
Tuesday
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service