For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रविवार सवेरे 7:00 बजे।
चाय की पहली चुस्की ली ही थी कि अखबार में छपे एक चित्र ने ध्यान खींच लिया। एक आँख जिसमें खुली पलकों के नीचे पुतली की बजाय सलाखें थी और उन सलाखों को एक हाथ ने थाम रखा था। कितने ही क्षण मैं हाथ में कप लिए उस चित्र को एकटक देखता रहा। इच्छाओं से जुड़े सपनों को कितनी ही बार सलाखों के पीछे बंद कर दिया जाता है।
सवेरे 9:00 बजे।
नाश्ता नहीं खा पाया, वही चित्र आँखों के सामने घूम रहा है। बचपन से नौकर-चाकरों और केअर टेकर के साथ ही रहा। डैडी  को बिजिनेस से फुर्सत नहीं थी तो मॉम को क्लब्स/कीटीज़ से वहीं दादी अपनी पूजा-पाठ में ही लगी रहती। सिर्फ मुझे आज़ादी नहीं थी, कहीं बाहर जाना होता तो ड्राईवर के साथ मेरी केअर टेकर मेरे साथ होती। जब रास्ते में कभी बच्चों को खेलते देखता तो कार की खिड़कियों पर फिसलते हुए मेरे हाथ उस चित्र में सलाखें थामे हुए जैसे ही लगते थे। दस साल का था मैं, जब एक दिन मॉम ने कहा था," बेटा! अपने स्टेट्स का ख्याल रखा करो। चाहो तो क्लब चला करो, वहाँ अपने स्टेट्स के बच्चों से दोस्ती करो।"  लेकिन मेरी आँखों में मिट्टी भरी थी, कभी क्लब नहीं जा पाया।
सवेरे 11:00 बजे।
पिछले चार घंटों में चार बार चाय पी चुका हूँ। डेड्डी की भी याद आ रही है मैं ग्यारह साल का भी नहीं हो पाया, जब उनका स्वर्गवास हो गया था, घर पूरी तरह बदल गया। कुछ ही महीनों के बाद दादी भी इसी गम में चल बसीं। नौकर चाकर तो थे लेकिन घर के नाम पर बचे सिर्फ मॉम और मैं। मॉम ने मुझे भी कुछ ना हो जाये इस डर से सलाखों को और भी मजबूत कर दिया और मेरे मन ने अपने हाथों से उन सलाखों को और भी कस कर थाम लिया।
मध्यान्ह 12:00 बजे।
एक कप ब्लैक कॉफी पी, शायद इससे कुछ संयत हो पाऊँ... लेकिन...। मॉम मुझे प्यार तो बहुत करती थी, लेकिन वे भी कभी क्लब और किटीज़ की सलाखों से आज़ाद नहीं हो पाईं और मैं केअर टेकर जैसी एक रोबोट के चंगुल से निकल नहीं पाया।
अपराह्न 2:00 बजे।
लंच में कुछ खा पाया। मेरा बेटा और बेटी दोनों सवेरे 6:00 बजे से रविवार की तफरीह पर चले गए थे। उनके आने पर ऐसा प्रतीत हुआ जैसे अमीरी की सलाखें तोड़ कर कोई एलओसी लांघ गया और मुझे भूख लग आई।
और यह लिखकर अविनाश ने डायरी बंद कर दी
मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 496

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nita Kasar on May 10, 2019 at 4:15pm

जीवन की आपाधापी में बहुत कुछ  पीछे छूट जाता है वही अतीत आज बन जाता है।बधाई कथा के लिये आद० कल्पना भट्ट जी ।

Comment by Samar kabeer on April 23, 2019 at 3:08pm

बहना कल्पना भट्ट रौनक़ जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 19, 2019 at 11:51am

आदाब। बहुत बढ़िया। हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना भट्ट साहिबा।

मध्याह्न बारह.बजे वाले  चरण में /करती थी/ --- /करता था/; /हो पाई/--/हो पाया/ .. कृपया देख लीजिएगा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
yesterday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
yesterday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service