9 फ़रवरी 2019
प्रिय डायरी
आज साईट पर कनक अम्मा की हालत देखकर मन भारी हो गया। तुम तो जानती ही हो, कनक अम्मा बाऊजी के समय से अपनी कम्पनी से जुड़ी है। बाऊजी को यह अन्ना दादा कहती थी। बाऊजी को तो तुमने भी देखा है, नहीँ तुम न थी उस वक़्त मेरे साथ तुम्हारी बड़ी बहन थी, मैं उससे अपनी बातें साझा किया करता था, जैसे मैं आज तुमसे करता हूँ। यह क्या मैं भटक गया... हाँ तो मैं कहाँ था। हाँ, कनक अम्मा की बात बता रहा था न मैं। आज वह रोज़ की तरह सीमेंट की तगाड़ी लेकर सीढ़ियों पर चढ़ रही थी कि वह फिसल पड़ी। कितनी ही बार मैंने उसको कहा था,"अम्मा अब रहने दे, आराम किया कर, आपकी तनख्वाह मैं दे दिया करूँगा।" वह हमेशा मुझसे कहती रही," चिन्न बाबू! इस तगाड़ी को उठाकर ही मैं बड़ी हुई हूँ, बूढ़ी हुईं हूँ, पर मेरी तगाड़ी मुझे समझती है मैं उसके बिना नही जी पाऊँगी। अब देखो वह गिर गयी बात भी तो नही मानती , उसके आगे-पीछे भी तो कोई नहीं है ,उसको मैंने अस्पताल तो पहुँचा दिया है, इलाज तो मुझे ही करवाना होगा, ड्यूटी होउर्स में जो गिरी है... पर एक बात आज मुझे कचोट रही है, वह तो मुझे बेटा मानती है, बचपन में जब भी बाऊजी के सामने माँ की ज़िद्द करता था, वे आकाश की ओर देखने लगते और अक्साई मुझे डाँट देते तब इसी कनक अम्मा ने मुझे प्यार दिया और माँ की कमी कभी मेहसूस नही होने दी ... पर क्या मैं कभी उनको माँ मान सकूँगा। मालिक और मज़दूर के बीच की इस दीवार को क्या मैं कभी ...
तुम्हारा लेखक
विकास
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय शहजाद जी आपको रचना पसंद आई शुक्रगुज़ार हूँ|
आदाब। डायरी शैली में बहुत बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना भट्ट 'रौनक' साहिबा।
बहना कल्पना भट्ट "रौनक़' जी आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
लेकिन रचना अभी अधूरी अधूरी सी लग रही है,डायरी की बड़ी बहन कौन थी?कथानक भी कमज़ोर है,इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है,कुछ टंकण त्रुटियां भी देखें ।
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