यह कैसी हवा ज़हरीली,
नफ़रत से भरी
विषकन्या क्या पुनः जीवित हो उठी है
आतंकी गलियारों में
वो वहाँ ख़ूनी होली खेली किसीने
संतुष्ट हुआ होगा क्या वह
अपने कर्तव्य को पूर्ण कर
घर जाकर क्या सुकूँ से सोया होगा!
ये कैसे धर्म ?
कैसा आचरण ?
कैसी शिक्षा ?कैसा प्रण?
मृत्यु अटल सत्य है
क़त्ल-ए-आम!
यह कैसा कृत्य है?
क्या औलाद ऐसी होती है?
जो माँ की छाती छलनी करती है
और वे माताएँ जिनकी
ऐसी सन्तान
खूनी दरिंदे जिनकी पहचान
मारो मारो मिलकर सब मारो
बेकसूरो को जो मारे
उनको मारो दूर करो इनको
यहाँ से छोडो इनको मरुस्थलों में
चील गिद्ध इनको नौचों
इनको खाकर पेट भरो ।।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया कल्पना दीदी सादर नमन! उत्तमाभिव्यक्ति!
उम्दा भावप्रण कविता के लिए बधाई आदरणीया
बहना कल्पना भट्ट रौनक़ जी आदाब,कविता का अच्छा प्रयास हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'वो वहाँ ख़ूनी होली खेली किसीने'
इस पंक्ति में 'किसी ने' की जगह "जिसने" कर लें ।
'ये कैसे धर्म ?'
इस पंक्ति में 'कैसे' की जगह "कैसा" कर लें ।
आप सभी पाठकों को सादर धन्यवाद|
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