"अपने पुत्र को समझाओ गांधारी। वासुदेव कृष्ण की माँग सर्वथा उचित है। 'पांडवो के लिये पाँच गाँव!' भला इससे कम और क्या हो सकता है?’’
"नहीं आर्यपुत्र, अब वह समझाने की सीमा में नहीं रहा। पानी सिर से ऊपर बहने लगा है।" गांधारी की आवाज सदैव की भांति स्थिर थी। 'मैंने आप से अनगिनित बार उसे समझाने के लिये कहा लेकिन आप के 'पुत्र-मोह' ने उसे कभी समझाना ही नहीं चाहा। परिणामतः हम जहां आ चुके है, वहां से लौटना संभव नहीँ।"
........... युद्ध की कालिमा छंट चुकी थी लेकिन सभी पुत्रों को खो चुके धृतराष्ट्र आज अतीत के अँधेरों में खोये हुए थे कि अनायास ही गांधारी के स्वर से उनकी तंद्रा भंग हो गयी। "स्वामी कहाँ खोये हुए है आप?"
'हां गांधारी, अतीत में जा पहुंचा था। आज मुझे अहसास हो रहा है कि मैनें पुत्रों के प्रति आवश्यकता से अधिक मोह रखने की जो भूल की है, वही हमारे पुत्रों के विनाश का कारण बनी।
"हां स्वामी, शायद हम स्वयं ही अपने पुत्रों के हत्यारे है।" गांधारी की आवाज भी शोकाकुल थी। "लेकिन भूल तो मैंने भी की थी स्वामी, जो शायद आप के मोह से भी कहीं बड़ी थी।"
"कैसी भूल गांधारी?"
"अपनी आँखों पर पट्टी बांधने की भूल स्वामी। मैंने इस पट्टी से आपकी नेत्रहीनता का अनुगमन नहीं किया वरन् आपकी समस्त गलत विचारधाराओं की अनुगामी बनकर जीती रही सदा।
"लेकिन तुमने तो अपना पतिधर्म ही निभाया था गांधारी!"
"हाँ पतिधर्म!" गांधारी का स्वर पीड़ा से भर गया। "लेकिन यदि मैंने एक बार भी कुछ आगे बढ़कर राजधर्म के लिये भी सोच लिया होता तो शायद कौरव-वंश का इतिहास कुछ और ही होता स्वामी।"
धृतराष्ट्र ख़ामोश थे लेकिन उनकी चुप्पी अतीत की भूल पर पश्चाताप की मोहर अवश्य लगा रही थी।
मौलिक एवं अप्रकाशीत
Comment
पति धर्म से बडा राजधर्म होता है।गांधारी को प्रतीक बना उम्दा कथा लिखी है।बधाई कल्पना जी।बच्चों के संपूर्ण विकास,संस्कारों पर माँ की है परछाईं पड़ती है ।
वाह्ह्ह्ह कथा का दूसरा पहलू ये भी हो सकता है आपने शत प्रतिशत सही कल्पना की है कल्पना जी पूर्णतः सहमत हूँ
बहुत बहुत बधाई आपको बच्चे बिगड़ने की बहुत कुछ जिम्मेदारी माँ पर आती है .
आदरणीया कल्पना भट्ट जी , नमस्कार। बहुत ही अच्छी प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।
//अतीत के अँधेरों में खोये हुए ...// ... आरंभिक फ्लैैशबैैक का बहुत बढ़िया मार्गदर्शक प्रयोग! पौराणिक पात्रों को लेकर एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम को बढ़िया तरीके से लेकर बहुत बढ़िया उम्दा प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार आदरणीया कल्पना भट्ट जी।
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब,
पौराणिक प्रसंग को आधार बनाकर स्त्री की मनोदशा मेंं झाँकने का अच्छा प्रयास किया आपने । यह लघुकथा कहींं न कहीं स्त्री मन के भीतर के विद्रोह को भी प्रदर्शित कर रही है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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