For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रेम (गीत-रोला छंद)/सतविन्द्र कुमार

प्रेम रतन अनमोल,इसे तुम रखो सँभााले
खुशियों का भंडार,यही है सुन मतवाले

बड़े-बड़े सब दुःख,प्रेम से ही कम होते
कष्ट बनें जो भार, इसी से हल्के होते
सहज लगे संघर्ष,प्रेम की ऐसी माया
जीवन का यह सार,ध्यान तू रख रे भाया
हमने सारे कष्ट,प्रेम के किए हवाले
खुशियों का भंडार ,यही है सुन मतवाले

मात-पिता के काम,समर्पित हैं बच्चों को
प्रेम डोर दे बाँध,सभी मन के सच्चों को
पावन सा इक भाव,प्रेम बन जग में आया
इसपर ही संसार,टिका यह उसका साया
प्रेम जगत का सार,इसी से दुनिया चाले
खुशियों का भंडार,यही है सुन मतवाले

प्रकृति हुई है मात,सभी पर स्नेह लुटाती
हर प्राणी से प्यार,न उनमें अंतर पाती
है लोभी इंसान,किया है इसका दोहन
प्रेम गया है भूल,कभी कहलाता मोहन
रहे प्रकृति को लूट,उसी के जो रखवाले
खुशियों का भंडार,यही है सुन मतवाले।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 562

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 11, 2016 at 4:08pm
आभार सँग नमन आदरणीय गिरिराज सर।हमने आदरणीय रवि शुक्ला जी के सुझाए अनुसार संशोधन कर लिया है।सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 10, 2016 at 9:58pm

आदरणीय सतविन्द्र भाई , अच्छी रचना हुई है , हार्दिक बधाइयाँ ! आ. रवि भाई जी की बातों का खयाल करें ।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 9, 2016 at 12:49pm
अनुमोदन्,प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन के लिए सादर हार्दिक आभार आद०रवि शुक्ल जी।सादर नमन।मैं त्रुटि ठीक करने का प्रयास करता हूँ।सादर
Comment by Ravi Shukla on August 9, 2016 at 11:31am

आदरणीय सतविन्‍द्र जी बढि़या गीत रचा है आपने इसके लिये बहुत बुहुत बधाई स्‍वीकार करें 

हर प्राणी से प्यार,नहीं उनमें अंतर पाती इस पंक्ति के सम चरण में मात्रा भार पुन: जॉंच लें । सादर 

 

अच्‍छा गीत है पुन: बधाई । सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service