For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सतविन्द्र कुमार राणा's Blog (143)

जमा है धुंध का बादल

  

चला क्या आज दुनिया में बताने को वही आया

जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आया

जरा सोचो कभी झगड़े भला करते किसी का क्या

कभी बारूद या गोले बसा पाए किसी को क्या

तबाही ही तबाही है दिखाने को वही आया

जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आया

मतों का भिन्न हो जाना सही है मान लेते हैं

सभी चिंतन जरूरी हैं इसे भी जान लेते हैं

मगर कट्टर नहीं अच्छा जताने को यही आया

जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आया

चला है देख लो कैसा…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 5, 2025 at 10:30pm — No Comments

बात का मजा जाए-ग़ज़ल

बात सुनकर ही कुछ कहा जाए,
हो न ये, बात का मजा जाए।

बोल चल देते वे ठिकाने तज,
मूल जिनका हवा-हवा जाए।

सत्य कहने का भी सलीका है,
जिसको छोड़ो, न सच सहा जाए।

जिंदगी है, खुशी-ओ-रंज भी हैं,
साथ इनके मियां जिया जाए।

काम ईमान से करे अपना,
तो वो इंसाँ भला कहा जाए।

'बाल' सच को नकारा ही जाता,
ऐसा भी क्यों समझ लिया जाए?

मौलिक अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 4, 2024 at 10:18pm — 2 Comments

दिख रहे हैं हजार आंखों में

तेरे बोलों के ख़ार आँखों में
दिख रहे हैं हजार आंखों में

मैनें देखा खुमार आँखों में
इश्क का बेशुमार आँखों में

इश्क है होशियार आँखों में
इश्क फिर भी गवार आँखों में


तेरी गलियों को छान कर जाना
होता क्या-क्या है यार आँखों में?

होठ बेशक हँसी से फैले हैं
दर्द पर बरकरार आँखों में।


'बाल' नादान है समझ तेरी
ढूंढती बस जो प्यार आँखों में।

मौलिक अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 3, 2023 at 9:30am — 7 Comments

रोला छंद

*रोला छंद*

बहुत दिखाते ज्ञान, तनिक उस पर क्या चलते

बोल कर्म के साथ, मिलें तो क्यों घर जलते

कोरी है बक़वास, शास्त्र की बातें करना

अपना ही व्यवहार, परे उससे यदि धरना।

रहें हजारों साथ, अकेले या वे रह लें

सच को कितना झूठ, झूठ को या सच कह लें

दुष्टों के क्या कृत्य, सही फल दे पातें हैं

कुटिल सदा ही मात, सुजन से खा जातें हैं।

धरती का दिल आज, देख कर जाए घटता

चहुँदिक दे आवाज़, शीश मानव का कटता

कुढ़ता शुद्ध विचार, शील पर चलती…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 14, 2023 at 7:41pm — 5 Comments

यूँ कर्म करें

हे जग अभियंता, सृजनहार, 

हे कृपासिंधु, हे गुणागार

हे परब्रह्म, हे पुण्य प्रकाश

हो पूरित तुम से, सही आस

हर छोटे-से छोटा जो कण,

या विश्व सकल विस्तार अनंत

तुम्हीं में समाहित सब कुछ…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 16, 2023 at 7:00pm — 2 Comments

कालिख सना समय

जब-जब कालिख सने समय के,

पन्ने खोले जाएंगे

मानवता पर लगे ग्रहण को,

सीधा याद दिलाएंगे।

आफत को जो अवसर मानें,

लाभ कमाने बैठे हैं

अन्तस् को बस मार दिया है,

हठ में अपनी ऐंठे हैं

आज हवा और दवा सब पर,

जिनका पूरा कब्जा है

जान छीनने के कामों को,

ही करने का जज़्बा है।

उनके सारे कर्म आज के,

सदा ही मुँह चिढाएंगे।

जब-जब कालिख सने समय के,

पन्ने खोले जाएंगे।

कुर्सी का लालच कुर्सी का

मद अब जिन पर छाया है

जिनके…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on May 18, 2021 at 5:00pm — No Comments

बिना बात की बात

बिना बात की बात बनाते,

लोग यहाँ दिख जाते हैं

जैसे उल्लू सीधा होता,

वैसे ही बिक जाते हैं।

धर्म नहीं जानें क्या होता,

क्या जानें परिभाषा को

रिश्तों को अब मान नहीं है,

स्थान नहीं कुछ आशा को।

दशरथ घर से बाहर हैं अब,

पूत वहाँ का राजा है,

देकर वचन भूल जाना बस,

यही समय से साधा है

सरयू को अपमानित करते,

गंगा दूषित होती है

देख नज़ारा प्रतिदिन का यह,

भारत भू अब रोती है।

राम नहीं है घट में लेकिन,

झंडों पर…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on April 21, 2021 at 2:46pm — 2 Comments

मिर्च कोई आग पर बोता है क्या- ग़ज़ल

2122 2122 212

मिर्च कोई आग पर बोता है क्या,
लोन-पानी ज़ख्म को धोता है क्या।

हो रहा जो अब भले होता है क्या,
कोई अपने आप को खोता है क्या।

बेबसी को तू हटा औज़ार बन,
इसका दामन थाम कर रोता है क्या।

इश्क़ करता, सब्ज़ धरती देख ले,
बीज इसका तू कभी बोता है क्या।

'बाल' चुप्पी साध लेना जुर्म पर,
जुर्म से खुद कम कभी होता है क्या।

लोन-नमक

मौलिक अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on April 6, 2021 at 8:06pm — No Comments

हौसले से तीरगी मिट जाएगी

2122 2122 212

कौन कहता है खुशी मिट जाएगी?
हौसले से तीरगी मिट जाएगी।

है भरम बस धूल आँधी के समय,
शांत होते ही कमी मिट जाएगी।

चोर चोरी भी तो मिहनत से करे,
कर ले मिहनत, गंदगी मिट जाएगी।

एक होता दूसरे खातिर फिदा,
फिर कहा क्यों जिंदगी मिट जाएगी?

'बाल' कर अल्फ़ाज़ से तू दोस्ती,
तेरी तन्हा बेबसी मिट जाएगी।


मौलिक अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 29, 2021 at 7:34am — 2 Comments

तेरे गम के निशानों को यहाँ पर कौन समझे

तेरे सच्चे बयानों को यहाँ पर कौन समझेगा,

तेरे गम के निशानों को यहाँ पर कौन समझेगा?

यहाँ महलों से होती हैं हमेशा बात की कोशिश,

बता कच्चे मकानों को यहाँ पर कौन समझेगा।

हुई है कीमती नफ़रत, बनी व्यापार का सौदा,

मुहब्बत के ठिकानों को यहाँ पर कौन समझेगा।

बदलते पक्ष ये झट-से, फिसलते एक बोटी पर,

अडिग रह लें, उन आनों को यहाँ पर कौन समझेगा।

जिन्होंने 'बाल' सोचा था करें कुछ देश की खातिर,

शहीदों को व जानों को यहाँ पर कौन…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 26, 2021 at 11:02pm — 8 Comments

हर सफ़े का हिसाब बाकी है- ग़ज़ल

2122 1212 22/112

देख लीजे ज़नाब बाकी है,

हर सफ़े का हिसाब बाकी है।

जब तलक इंतिसाब बाकी है,

तब तलक इंतिहाब बाकी है।

बर्क़-ए-शम से मिच मिचाए क्यों,

आना जब आफ़ताब बाकी है?

चंद अल्फ़ाज पढ़ के रोते हो,

पढ़ना पूरी क़िताब बाकी है।

रौंदने वाले कर लिया पूरा,

अपना लेकिन ख़्वाब बाकी है।

'बाल' अच्छा कहाँ यूँ चल देना,

जब कि काफ़ी शराब बाकी है।

---

इंतिसाब: उठ खड़े होना।

इंतिहाब: लूटना,…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 19, 2021 at 10:30pm — 3 Comments

खुद को पा लेने की घड़ी होगी- गजल

2122 1212 22

खुद को पा लेने की घड़ी होगी,

वो मयस्सर मुझे कभी होगी।

हाथ से हाथ को छू लेने से

दिल की सिलवट भी खुल गयी होगी।

याद लिपटी है उसकी चादर-सी,

देह लाज़िम मेरी तपी होगी।

उसके बिन मैं सँभल चुका हूँ अब,

मस्त उसकी भी कट रही होगी।

बोल ज्यादा मगर सभी मीठे,

आज भी वैसे बोलती होगी?

तब शरारत ढकी थी चुप्पी में,

आज भी उसको ढाँपती होगी।

दिल में कोई चुभन हुई मेरे,…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 24, 2020 at 12:00am — 4 Comments

छोड़ दो काफ़ी सियासत हो गयी है

2122 2122 2122

.

जानते हैं तुम में ताकत हो गयी है,

और किस-किस पे ये आफत हो गयी है।

झूठ है जो, झूठ बिन कुछ भी नहीं, पर

अब जमाने में सदाक़त हो गयी है।

जब चमन का फूल होने का भरो दम,

क्यों चमन से ही अदावत हो गयी है?

जिस्म पर ठंडा लबादा, आग मुँह में,

जिसने रक्खे उसकी शुहरत हो गयी है।

कौम के अच्छे की खातिर काम हो अब,

छोड़ दो काफ़ी सियासत हो गयी है।

हर खुशी पर, मेरी बोलो तो भला क्यों,…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 2, 2020 at 12:00pm — 14 Comments

तेरा होना मेरा सर्जन है

मैं बीज पड़ा तेरे आँगन में

तेरी आर्द्रता से अंकुरण है

ये तन पौध बना फिर देख बढ़ा

तेरा होना मेरा सर्जन है।

कल-कल बहती हैं नदियाँ तुझ पर

मीठे-मीठे गीत सुनातीं हैं

जीवन को सींच रही हैं पल-पल

हरियाली को लेकर आतीं हैं

नित चलती पथ पर ये बिना रुके

आगे को ही बढ़ती जातीं हैं

बाधाओं को पार करें कैसे

ऐसा सबको पाठ पढ़ातीं हैं।

फिर मीत सिंधु के जा साथ मिलें

दिख जाता क्या प्रेम समर्पण है?

ये तन पौध बना फिर देख बढ़ा…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 2, 2019 at 11:00am — 2 Comments

नहीं अच्छा है यूँ मजबूर होना- ग़ज़ल

1222 1222 122
नहीं अच्छा है यूँ मजबूर होना
दिखो नजदीक लेकिन दूर होना।

कली का कुछ समय को ठीक है, पर
नहीं अच्छा चमन, मगरूर होना।

अँधेरों में उजालों को दे रस्ता
चिरागों का न थकना चूर होना

कोई कहता इसे वरदान है ये
खले लेकिन किसी को हूर होना।

अभी सूखा नहीं रख ले तसल्ली
दिखेगा ज़ख्म का नासूर होना।

कदम तो चूम लेगी जीत तेरे
है बाकी बस तुझे मंजूर होना।

मौलिक अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 20, 2019 at 2:00pm — 2 Comments

पत्थरों पे हैं इल्ज़ाम झूठे सभी-गजल

212 212 212 212

अब नए फूल डालों पे आने लगे,

और' भ्रमर फिर ख़ुशी से हैं गाने लगे।

पत्थरों पे हैं इल्जाम झूठे सभी,

राही के ही कदम डगमगाने लगे।

रहबरी तीरगी की जो करते रहे,

अब वो सूरज को दीपक दिखाने लगे।

वादा वो ही किया जो था तुमने कहा,

घोषणा क्यों चुनावी बताने लगे।

जिनकी आँखों पे सबने भरोसा किया,

वक्त  आने पे सारे वो काने लगे।

भैंस बहरी नहीं सुन समझ लेगी सब,

बीन ये सोच कर फिर…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 21, 2019 at 11:30am — 2 Comments

हम मानेंगे बात जो हमको प्यारी है- ग़ज़ल

22 22 22 22 22 2

नमक मसाले से बनती तरकारी है

सच मानों यह असली दुनियादारी है।

देख सलीका नकली बातें करने का

असली पर ही पड़ जाता कुछ भारी है।

छेदों से ही जिसकी है औक़ात यहाँ

छलनी ही समझाती, क्या खुद्दारी है?

होते हों कितने भी पहलू बातों के

हम समझेंगे जितनी अक्ल हमारी है।

तुम मानों जो तुमको अच्छा है लगता

हम मानेंगे बात जो हमको प्यारी है ।

आज लबादे में लिपटे अल्फ़ाज़ सभी

जिनको सुनना जनता की…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 4, 2019 at 9:00am — 4 Comments

करो कुछ याद उनको जो गये हैं- ग़ज़ल

1222 1222 122

ये देखा और' सुना इस फरवरी में

बहकता दिल ज़रा इस फरवरी में।

किसी की कोशिशें कुछ काम आई

कोई जम कर पिटा इस फरवरी में।

दिखावे में ढली है जिंदगी बस

रहे सच से जुदा इस फरवरी में।

मुहब्बत को समेटा है पलों ने

हुआ ये क्या भला इस फरवरी में?

कहीं पर नेह की कोंपल भी फूटी

किसी का दिल जला इस फरवरी में।

करो कुछ याद उनको जो गये हैं

वतन पर जां लुटा इस फरवरी में।

मौलिक…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 12, 2019 at 7:30pm — 2 Comments

नफरतों को छोड़ लगता- ग़ज़ल

ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

नफरतों को छोड़ लगता पास चल कर आ गए

हो न कुर्सी दूर फिर, वो दल बदल कर आ गए।

जंगलों पे राज करने का जुनूँ जो सर चढ़ा

शेर जैसी शक्ल में गीदड़ भी ढल कर आ गए।

इश्क में देखो उन्होंने यूँ निभाई है वफ़ा

चाहने वाले के सारे ख़्वाब दल कर आ गए।

ठंड की जो चाह में उन तक गए ले मन-बदन

गुप्त शोलों में वो बस चुपचाप जल कर आ गए।

सामने कमजोर प्राणी उनको जो दिखने लगा

है गज़ब सारे शिकारी ही मचल कर आ…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 27, 2019 at 6:30am — 8 Comments

रक्तसिक्त हाथ (लघुकथा)

*रक्तसिक्त हाथ* (लघुकथा)

हवालाती कैदी के रूप में तीसरा दिन। किसी से मुलाक़ात के लिए उसे भी पुकारा गया। मुलाकात कक्ष में पहुँचते ही सींखचों के पार एक मुस्कुराता चेहरा नज़र आया।

काजू कतली का डिब्बा आगे बढ़ाते हुए जिसने कहा, ''रजिस्ट्री हो गई साहब! मुँह मीठा करवाने आया हूँ।"

कुछ ही समय पहले जो बिलकुल अंजान था, वही चेहरा अहर्निशं अब उसकी आंखों और दिमाग़ में तैरता रहता है।

सत्यवीर भान का चेहरा। आज दूसरी बार इस चेहरे पर भयानक मुस्कुराहट देख पा रहा था। जिसे देखकर उसे स्मरण हो…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 2, 2019 at 9:26am — 14 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

1999

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
17 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service