2122 1212 22
खुद को पा लेने की घड़ी होगी,
वो मयस्सर मुझे कभी होगी।
हाथ से हाथ को छू लेने से
दिल की सिलवट भी खुल गयी होगी।
याद लिपटी है उसकी चादर-सी,
देह लाज़िम मेरी तपी होगी।
उसके बिन मैं सँभल चुका हूँ अब,
मस्त उसकी भी कट रही होगी।
बोल ज्यादा मगर सभी मीठे,
आज भी वैसे बोलती होगी?
तब शरारत ढकी थी चुप्पी में,
आज भी उसको ढाँपती होगी।
दिल में कोई चुभन हुई मेरे,
चश्म उसकों में कुछ नमी होगी।
'बाल' आती है याद तुझको, क्या
तेरी उसको भी आ रही होगी।
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय तेजवीर जी, सादर हार्दिक आभार
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सादर आभार सह नमन
हार्दिक बधाई आदरणीय सतविन्द्र कुमार राणा जी। बेहतरीन गज़ल।
याद लिपटी है उसकी चादर-सी,
देह लाज़िम मेरी तपी होगी।
आ. भाई सतविन्द्र जी, सादर अभिवादन ।सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
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