तेरे सच्चे बयानों को यहाँ पर कौन समझेगा,
तेरे गम के निशानों को यहाँ पर कौन समझेगा?
यहाँ महलों से होती हैं हमेशा बात की कोशिश,
बता कच्चे मकानों को यहाँ पर कौन समझेगा।
हुई है कीमती नफ़रत, बनी व्यापार का सौदा,
मुहब्बत के ठिकानों को यहाँ पर कौन समझेगा।
बदलते पक्ष ये झट-से, फिसलते एक बोटी पर,
अडिग रह लें, उन आनों को यहाँ पर कौन समझेगा।
जिन्होंने 'बाल' सोचा था करें कुछ देश की खातिर,
शहीदों को व जानों को यहाँ पर कौन समझेगा।
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ. भाई सतविंद्र जी , सादर अभिवादन । उत्तम गजल हुई है हार्दिक बधाई ।
जी, आदरणीय बृजेश भाई ऐसे किया जा सकताहै।सादर आभार
तब ठीक है लेकिन सौदा की जगह साधन भी किया जा सकता है...सादर
"बनी व्यापार का साधन"
आदरणीय समर कबीर जी सादर नमन, मार्गदर्शन के लिए बहुत-बहुत आभार। यहाँ पर को रहने देते हैं, ताकि कोई और पाठक इसे पढ़े तो आपका मशवरा भी।ध्यान आये। मैं इसे ठीक कर लेता हूँ। आगे भी इस बात का ध्यान रखा जाएगा।
आदरणीय बृजेश भाई जी, सादर आभार। बनी व्यापार का सौदा, नफ़रत के बारे में ही कहा है कि यह कुछ लोगों के लिए व्यापार बन गयी है। सौदा पंजाबी में वस्तु को भी कह लेते हैं, खरीद-बेच की क्रिया को भी कहते हैं। इसलिए व्यापार और सौदा समानार्थी भी मालूम होते हैं। मैनें यहाँ सौदा- सामान (वस्तु) अर्थ लिया है। सादर
जनाब सतविन्द्र कुमार राणा जी आदाब, 'यहाँ' शब्द के साथ 'पर' का प्रयोग उचित नहीं होता,इस हिसाब से अपनी रदीफ़ पर ग़ौर करें ।
आदरणीय सतविंद्र जी बढ़िया कहा बधाई...तीसरे शे'र के उला में "बनी व्यापार का सौदा"
ये कुछ समझ नहीं आ रहा।
आदरणीय मोहन बेगोवाल जी, सादर नमन सह आभारं
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