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तेरे गम के निशानों को यहाँ पर कौन समझे

तेरे सच्चे बयानों को यहाँ पर कौन समझेगा,
तेरे गम के निशानों को यहाँ पर कौन समझेगा?

यहाँ महलों से होती हैं हमेशा बात की कोशिश,
बता कच्चे मकानों को यहाँ पर कौन समझेगा।

हुई है कीमती नफ़रत, बनी व्यापार का सौदा,
मुहब्बत के ठिकानों को यहाँ पर कौन समझेगा।

बदलते पक्ष ये झट-से, फिसलते एक बोटी पर,
अडिग रह लें, उन आनों को यहाँ पर कौन समझेगा।

जिन्होंने 'बाल' सोचा था करें कुछ देश की खातिर,
शहीदों को व जानों को यहाँ पर कौन समझेगा।

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 10, 2021 at 7:50am

आ. भाई सतविंद्र जी , सादर अभिवादन । उत्तम गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 10, 2021 at 7:25am

जी, आदरणीय बृजेश भाई ऐसे किया जा सकताहै।सादर आभार

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 9, 2021 at 9:46pm

तब ठीक है लेकिन सौदा की जगह साधन भी किया जा सकता है...सादर

"बनी व्यापार का साधन"

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 5, 2021 at 3:04pm

आदरणीय समर कबीर जी सादर नमन, मार्गदर्शन के लिए बहुत-बहुत आभार। यहाँ पर को रहने देते हैं, ताकि कोई और पाठक इसे पढ़े तो आपका मशवरा भी।ध्यान आये। मैं इसे ठीक कर लेता हूँ। आगे भी इस बात का ध्यान रखा जाएगा।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 5, 2021 at 3:01pm

आदरणीय बृजेश भाई जी, सादर आभार। बनी व्यापार का सौदा,  नफ़रत के बारे में ही कहा है कि यह कुछ लोगों के लिए व्यापार बन गयी है। सौदा पंजाबी में वस्तु को भी कह लेते हैं, खरीद-बेच की क्रिया को भी कहते हैं। इसलिए व्यापार और सौदा समानार्थी भी मालूम होते हैं। मैनें यहाँ सौदा- सामान (वस्तु) अर्थ लिया है। सादर

Comment by Samar kabeer on April 3, 2021 at 7:26pm

जनाब सतविन्द्र कुमार राणा जी आदाब, 'यहाँ' शब्द के साथ 'पर' का प्रयोग उचित नहीं होता,इस हिसाब से अपनी रदीफ़ पर ग़ौर करें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 1, 2021 at 8:45pm

आदरणीय सतविंद्र जी बढ़िया कहा बधाई...तीसरे शे'र के उला में "बनी व्यापार का सौदा"

ये कुछ समझ नहीं आ रहा।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 28, 2021 at 7:00am

आदरणीय मोहन बेगोवाल जी, सादर नमन सह आभारं

Comment by मोहन बेगोवाल on March 27, 2021 at 7:46am
ऐसी भावपूर्ण ग़ज़ल के लिए बहुत बधाई हो।

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