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बाल मज़दूरी ( लघुकथा)

मुझे पढ़ना है
"बाल मज़दूर ! यह क्या होता है अंकल । यह आप किसके लिये बोल रहे थे ।"
" ओह ! कल्लू तो तुमने हमारी बातें सुन ली । बच्चे मज़दूर माने मेहनत करने वाला । बाल मज़दूर माने बच्चा जो दिन भर मेहनत करके रोटी कमाये । "
" अच्छा ! पर मेरी अम्मी तो मुझे राजा बेटा बुलाती है और बाबा मुझे कहते है पैसे की खान । पर यह होता क्या है ? खान माने !! "
"अरे तुम्हारे बाबा भी है क्या ? वो क्या करते है ? "
" है न मेरे बाबा , वे तो घर में ही रहते हैं । अम्मी कहती हैं वो जुवारि हैं । कुछ काम नहि करते है । पर उनको तो मैं काम करते देखता हूँ । रोज़ घर का पानी भरते है । और अम्मी और मैं जब काम करने निकलते है तब वे अपने दोस्तों के साथ घर में ही बैठ कर ताश खेलते है ।"
"तो वो काम नही करते ? बेटा सुनो यह तुम्हारी उम्र काम करने की नहीं है । तुम्हे स्कूल जाना चाहिए । तुम मज़दूरी कर रहे हो और तुम्हारे बाबूजी तुम्हारी कमाई खा रहे है । क्या तुम्हारी इच्छा नही होती कि तुम भी अपने दोस्तों की तरह पढ़ों ? बेटा ,तुम्हें अपने बाबूजी से कहना चाहिये कि उनको काम करना चाहिये । या तुम मुझे उनके पास ले चलो मैं बात करता हूँ । बाल मज़दूरी करवाने वालों को भी जेल हो जाती है । क्या तुम यह चाहोगे कि ऐसा हो । "
कल्लू के आँखों से आँसू गिरने लगे । वो रोज़ अपने दोस्तों को स्कूल जाते देखता था । पर जब भी घर में बात चलती उससे प्यार से समझा दिया जाता था । मासूम फिर अगले दिन काम पर चला जाता । इस बार बाबूजी की बातों से उसे डर लग रहा था । वो भागता हुआ घर गया और बोला , " अम्मी बाबा से कहो न कि वे काम पर जाएं और मुझे स्कूल जाने दो न ।
वो जहाँ मै काम करता हूँ उन्होंने कहा की बाल मज़दूरी करवाने वाले को भी जेल भेज दिया जाता है । "
रोते हुए वो बस यही बोलता रहा , "मुझे पढ़ना है ........मुझे ..... ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 17, 2016 at 9:12am
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