For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बुढ़िया
एक पेड़ के साये में एक बुढ़िया रहती थी । कोई नहीं जानता था उसको । बस वहाँ से गुज़रते लोगों को देखती ,चहल पहल देखती और गर कोई उसे कुछ दे देता तो खा लेती थी । उनकी झुर्रियाँ बहुत कुछ कहती थी । पर यह थी कौन कहाँ से आई कोई नही जानता था ।
लोगों का पहले तो ध्यान नहीं था पर रोज़ उसी जगह पर उसे देख वो एक आकर्षण का केंद्र बन गयी थी । "पर यह थी कौन ? "अ ने ब से पूछा जो यह किस्सा सुना रहा था ।
"एक दिन अख़बार की सुर्ख़ियों में इसके मौत की खबर देख एक आदमी आया था ।उसने उस बुढ़िया के लिये थाने में जाकर पूछताछ कि । वहां से पता चला की वो जिस पेड़ के साये में बैठती रहती थी उस पेड़ को उसके ससुरजी ने लगाया था । और जो बस्ती अब बन गयी थी वो ज़मीन असल में उसीकी थी । उसके बच्चों ने धोका देकर सब कुछ बेच दिया । पर तब से उसने अपने बच्चों को छोड़ दिया और वो यहाँ बैठती थी । "
"तो क्या फिर उनके बेटों को उसकी लाश दी गयी । उनके बच्चों का क्या हुआ ?" अ ने उत्सुकता वश जानना चाहा ।
"वो सामने घर देख रहे हो न ,वहां देखो उस पेड़ , और उसके ऊपर वो घोंसला । कौन कहता है टूटी शाखों पर घरोंदे नहीं बन सकते । " ब ने कहा ।
" पर आप यह सब कैसे जानते हो ?"
ब ने उत्तर दिया , " टूटी शाखों पर घरोंदा जो बसाना था । "


मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 431

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 15, 2016 at 8:41pm
धन्यवाद आदरणीय सात्विन्द्र भैया ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 15, 2016 at 4:14pm
हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना दीदी इस प्रस्तुति के लिए।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 13, 2016 at 9:46pm
धन्यवाद आदरणीय शहज़ाद भाई ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 13, 2016 at 8:58pm
बिलकुल ही उम्दा अलग अंदाज़ में इस बढ़िया प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया कल्पना भट्ट जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service