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ग़ज़ल - इक अक़ीदा चल के बुतखाना हुआ -( गिरिराज भंडारी )

2122    2122    212 -

की मुहब्बत पर न जल जाना हुआ

जल उठूँ, ऐसा न मस्ताना हुआ

 

इक अक़ीदत बढ के मस्ज़िद हो गई   *---  श्रद्धा

इक अक़ीदा चल के बुतखाना हुआ  ----    विश्वास ,

वो न आयें, तो रहीं मजबूरियाँ 

हम न पहुँचे तो ये तरसाना हुआ

बात उनकी सच बयानी हो गई

हम हक़ीक़त जब कहे , ताना हुआ

 

आपने कैसी खुशी बाँटी हुज़ूर

चेह्रा चेह्रा आज ग़मख़ाना हुआ

 

चाहते इल्मो अदब ने ये किया 

घूमता हूँ ख़ुद से बेगाना हुआ

 

जिसने देखा है ख़ुदा को, आये बर 

या ख़ुदा को मै कहूँ , माना हुआ ?

 

क्या रहें इस शह्र में ऐ दिल बता ?

एक भी चेहरा नहीं जाना हुआ

*************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 784

Comment

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Comment by Naveen Mani Tripathi on September 6, 2016 at 4:16pm
लाजबाब लिखा सर जी । बधाई ।
Comment by Shyam Narain Verma on August 19, 2016 at 3:11pm
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ....हार्दिक बधाई ! 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2016 at 10:18am

आदरनीय सौरभ भाई , आपके - क्या कहूँ ? ने सब कुछ कह दिया , सुन के दिल बाग बाग है । सराहना के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2016 at 10:16am

आदरणीय बृजेश भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2016 at 10:16am

आदरणीया राजेश जी , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2016 at 10:15am

आदरणीय नवीन मणि भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2016 at 10:14am

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , गज़ल की मुखर सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2016 at 10:13am

आदरणीय समर भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया आपका ।

चाहत-ए-इल्म-ओ-अदब ने ये किया  // आपने सही कहा . मिसरा ऐसे ही कर लूँगा । आपका हृदय से आभार ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 19, 2016 at 12:17am

क्या कहूँ ? बस वाह वाह वाह ! कमाल को कमाल ही कहते हैं, आदरणीय गिरिराज भाईजी.. 

हार्दिक बधाइयाँ 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 18, 2016 at 10:06pm

क्या कहने आदरणीय बहुत खूबसूरत ग़ज़ल

कृपया ध्यान दे...

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