For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नज़्म : - तब तुम मुझको याद करोगी !

नज़्म : - तब तुम मुझको याद करोगी !

सूनेपन की रेत पे लम्हे दुःख की सुबहो - शाम लिखेंगे

थाम के तेरी नाज़ुक उंगली भूला सा एक नाम लिखेंगे

दिल के दस्तावेज की स्याही जब आंसू से धुल जायेगी

सर्द हवा के हलके झोंके से जब तन्द्रा खुल जायेगी

ख्वाब में तेरे भूला चेहरा बनकर तुझको छल जाऊँगा

तब तुम मुझको याद करोगी और मैं तुमको याद आऊँगा |

 

शाम किसी जब घर की देहरी पर तुम बेमन सी बैठोगी

दूब की एक टहनी को लेकर अपनी उंगली में ऐन्ठोगी

चाँद सा कोई झिलमिल चेहरा भी ना मन को भा पायेगा

सांझ की उस झुरमुट में मैं घायल जुगनू बन आ जाऊंगा

तब तुम मुझको याद करोगी और मैं तुमको याद आऊँगा |

 

कोई भुला सा एक नगमा जब होंठों से फूट पड़ेगा

या पन्नों के बीच दबा सूखा गुलाब जब छूट पड़ेगा

दर्द में डूबी तेरी सासें रात की रानी सी महकेंगी

खुशियों के मोती चुनने में जीवन की कश्ती बहकेगी

लहरों में तेरा चेहरा बनकर मैं तुझपर छा जाऊंगा

तब तुम मुझको याद करोगी और मैं तुमको याद आऊँगा |

 

सावन के आने की आहट तेरी आँखें नम कर देगी

हरे भरे खुश रंग रूप में खुशी भी आना कम कर देगी

भादो की बरछी सी बौछारें जब सीने को बीन्धेंगी

तेरी आँखें गये वक्त की याद के बिरवे को सींचेंगी

बीच बादलों के मैं बिजली बनकर तुझको चौकाऊंगा

तब तुम मुझको याद करोगी और मैं तुमको याद आऊँगा |

 

जेठ की तपती दोपहरी में सूनापन खाने दौडेगा

बेचैनी का सूत्र ढूँढने तेरा भोला मन भरमेंगा

कोई नन्हा सा बच्चा जब खेलेगा तेरे आँचल से

चिहुंक उठोगी दरवाजे की हिलती बजती सी सांकल से

सांकल की दस्तक में ढलकर बच्चे की आँखों में पलकर

स्वप्न सुहाना दिखलाऊंगा तुमको जीना सिखलाऊंगा

तब तुम मुझको याद करोगी और मैं तुमको याद आऊँगा |

 

जब भी पढोगी  नज्में मेरी या ग़ज़लों को तुम गाओगी

आँखों से ढलते अश्कों में अपने अभिनव को पाओगी

साथ किसी का हाथ भले हो कसक तो होगी सीने में

खुद से कहोगी तुमभी अक्सर क्या रखा है जीने में

असमंजस की मनःस्थिति से तुमको वापस लाऊंगा

तब तुम मुझको याद करोगी और मैं तुमको याद आऊँगा |

 

(अभिनव अरुण की डायरी से ब-कलम खुद)

Views: 429

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on May 16, 2011 at 4:32pm
abhaar satish jee aapkee tippani ke liye |
Comment by satish mapatpuri on May 16, 2011 at 4:03pm

साथ किसी का हाथ भले हो कसक तो होगी सीने में

खुद से कहोगी तुमभी अक्सर क्या रखा है जीने में

बहुत खूब अभिनवजी, बरबस किताबे ज़िन्दगी के कुछ वो पन्ने पलट गए, जो जीवन की आपाधापी में बंद हो गए थे.बेहतरीन ख्यालात के लिए साधुवाद.

Comment by Abhinav Arun on May 16, 2011 at 11:31am
बहुत बहुत शुक्रिया विवेक जी स्नेह बनाये रखें सृजन रथ चलता रहेगा यही इच्छा है !
Comment by विवेक मिश्र on May 15, 2011 at 10:16pm
बहुत गहरी बातें लिख रखी हैं अरुण जी. हर एक पंक्ति किसी न किसी याद से जुड़ी हुई है. विचारों की सुन्दर अभिव्यक्ति का नमूना है. ह्रदय से साधुवाद.
Comment by Abhinav Arun on May 15, 2011 at 9:22pm

आपके स्नेह का शुक्रिया बागी भाई ! असल में इधर कुछ नया लिखना नहीं हो पा रहा सोचा क्यों कुछ अपना पसंदीदा पुराना ही सही शेयर किया जाये ... खामोशी से यही भला ! वैसे कभी मैं इस नज़्म को लोगों को खोज खोज कर सुनाया करता था और तारीफ पाता था !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 15, 2011 at 9:19pm

जब भी पढोगी  नज्में मेरी या ग़ज़लों को तुम गाओगी

आँखों से ढलते अश्कों में अपने अभिनव को पाओगी

साथ किसी का हाथ भले हो कसक तो होगी सीने में

खुद से कहोगी तुमभी अक्सर क्या रखा है जीने में

 

वाह अरुण भाई वाह, बेहतरीन भाव है, या यह कहे कि अभिनव का अनुभव बोल रहा है तो शायद अतिश्योक्ति न होगा :-)

खुबसूरत रचना हेतु बहुत बहुत बधाई, 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service