For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहुत याद आऊंगा ....

बहुत याद आऊंगा ....

रोज की तरह
आज भी भानु रश्मियों ने
एक नये जोश के साथ
धरती पर अपने
पाँव पसारे

चिडियों की चहचहाट ने
वातावरण को अपनी मधुर ध्वनि से
अलंकृत कर दिया

साइकिल की घंटी बजाता दूधवाला
घर घर दूध की आवाज देने लगा

सड़क पर सफाई वालों ने भी
अपना मोर्चा सम्भाल लिया

ये सारा नजारा
मैं अपनी युवा काल से
आज तक
इसी तरह देखता हूँ

आज मैं
अपने बदन पर
चंद पतियों के साथ
सड़क के किनारे
तटस्थ
मूक दर्शक की तरह खड़ा
वर्षों से यह सब
देख रहा हूँ

पहले तो
राहगीर भी मेरी छाया में
बैठ कर विश्राम किया करते थे

कभी कोई वृद्ध
असली सहारों से उपेक्षित
लकडी के नकली सहारे
सहारों के सहारे
चहरे पर
ज़िन्दगी के सफ़र की
आड़ी टेड़ी झुर्रियों की सौगात के साथ
मेरे तने से पीठ लगा कर
अपने बीते लम्हों को
आंखें बंद कर याद करता
और उसकी आँखों से
गंगा से पवित्र
आँसू की जलधार
चहरे पर बनी
झुर्रियों की घाटियों से गुजरती
उसकी पुरानी कमीज में खो जाती
फिर वो धीरे से
खिन्न मन से
झुके कांधों और लड़खड़ाती टांगों पर
अपने बोझ को उठा कर
आगे चल पड़ता

हर जानवर के लिए
मेरी छाया धूप में
अमृत समान थी

धीरे धीरे
समय का चक्र
अपनी क्रूर छैनी से
मेरी उम्र की परतों पर
अपनी नक्काशी करने लगा

आने को तो पंछी
आज भी आते हैं
अपनी चहचहाट के बाद
लेकिन जल्दी ही चले जाते हैं
शायद मुझमें अब उनको
आश्रय देने के लिए
घनी पतियों का अभाव है
नग्न होती मेरी टहनियां
राहगीरों को भी
धूप से बचाने में सक्षम नहीं हैं
जानवरों ने भी नये आश्रय ढूँढ लिए हैं
अब भोर और सांझ
मेरे लिए बेमतलब है
पर ,आदत से मजबूर
मेरी जर्जर होती बाहें
आज भी हर किसी का
दुःख अपने में समेटने को आतुर हैं

कुछ दिनों से मैं डरने लगा हूँ
कुछ अपने
मेरे अंदर की ममता से बेखबर
मेरी ही छाँव में पनाह लेने वाले
हाथों में कुल्हाड़ी लिए
मुझे देखकर
मेरे जिस्म का
मोल भाव करते नजर आ रहे हैं
और मैं
बेबस, असहाय, लाचार
सड़क के किनारे
अपनी चंद पतियों के साथ
उनके प्रहार के डर से
पल पल मर रहा हूँ

जानता हूँ
आज नहीं तो कल
मेरा सौदा हो जाएगा
मेरा अस्तित्व
कई टुकड़ों में कट जाएगा
फिर ये अस्तित्व
कहीं चूल्हे में तो
कहीं शमशान में जलाया जाएगा

यही विधि का विधान है
यही ज़िन्दगी
यही हर शय का
अंजाम है

मुझे मिटाने वालो
मैं मिट के भी न मिट पाऊंगा
गुजरोगे जब उस रहगुज़र से
तपती धूप में
सच कहता हूँ
मैं
बहुत याद आऊंगा

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 467

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on September 22, 2016 at 8:27pm

आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण'    जी ये रचना और इसके भाव मेरे दिल के बहुत करीब हैं। आपने इस रचना की लंबाई को भुला इसे अपना अमूल्य समय देकर जो मान बढाया उसने मेरे सृजन को उपकृत किया है। प्रस्तुति ने आपको छुआ, यही  लिए बहुत है। आपके आत्मीय स्नेह का दिल से आभार। 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 22, 2016 at 1:18pm
आदरणीय सुशील सरना जी बहुत ही सुन्दर रचना है । यथार्थ को दर्शाती हुई। बधाई स्वीकार करें । सादर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
43 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
" आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
45 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
48 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम चंद गुप्ता जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
50 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
53 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
55 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
56 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ने के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
57 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, सबसे पहले ग़ज़ल पोस्ट करने व सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल 2122 1212 22..इश्क क्या चीज है दुआ क्या हैंहम नहीं जानते अदा क्या है..पूछ मत हाल क्यों छिपाता…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए आभार।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन  के लिए आभार।"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service