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एक तन .... (क्षणिकाएं) ...

1. एक तन .... (क्षणिकाएं) ...

लड़ते-लड़ते
धरा की गोद में
लहुलुहान
कोई सो गया
तिरंगे में
लिपटा हुआ
फिर एक तन
एक वतन
हो गया
... ... ... ... ... ... ... ... ...
2. शेष ....


गोली
बारूद
धमाके
लाशें
चीखें
धुऐं की गर्द
बस
हदों के झगड़ों का
यही था
शेष
... ... ... ... ... ... ... ... ... ...
3. हल ....


लिपट गया
तिरंगे में
भारत माँ का
एक लाल
छोड़ गया
अपने पीछे
खामोश सुलगते
कई सवाल
सरहद
आतंक
छलनी ज़िस्म
कब निकलेगा
आखिर
इन सब का
शान्ति से
हल

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on September 22, 2016 at 8:22pm

आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण'    जी क्षणिकाओं में निहित भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 22, 2016 at 1:28pm
वाह आदरणीय सुशील सरना जी बहुत खूब।वक्त यही कह रहा है । सुन्दर भावप्रद एवं समयानुकूल रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।

कृपया ध्यान दे...

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