बहर : २१२ २१२ २१२ २१२
पेट को चाहिए खाद्य, नारा नहीं
पेट जितने से भर जाय, सारा नही |
भावना की कमी, जाँचना चाहिए
भूखे को चाहिए खाना,चारा नहीं |
सारे रिश्ते बिगड़ते हैं, तकरार से
शत्रुवत और हो जाता यारा नहीं |
बात है कर्ण प्रिय ,’आयगा अच्छा दिन”
अब किसी को भी यह, लगता प्यारा नहीं |
देख कर ठण्ड वातावरण क्या कहें
पी गए मय मधुर किन्तु प्यारा नहीं |
सिन्धु जल मेघ बन फिर बरसता कहीं
वह अमृत वारि मीठा है खारा नहीं |
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय | हार्दिक बधाई |
आदरणीय शिज्जू शकूर और आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी आप दोनों बहुत बहुत धन्यवाद | शब्द के लिंग की तरफ ध्यान नहीं गया था |उस पंक्ति को ऐसा कर देता हूँ
"शत्रुवत और हो जाता, यारा नहीं "
आदरणीय कालिपद सर यहाँ यारा शब्द के प्रयोग की बात कर रहा हूँ आपके बयान के अनुसार यहाँ यारी शब्द होना चाहिए जबकि आपने यारा लिखा है
आदरणीय शिज्जू शकूर जी ,शुक्रिया हौसला अफजाई के लिए | तकरार शब्द है जो उला और सानी मिसरा को जोड़ता है | तकरार होती है तो रिश्ते बिगड जाते है ,सानी में -तकरार से दुश्मनी हो जाती है ,दोस्ती नहीं | आशा है अब स्पष्ट हुआ होगा | सादर
आ. कालिपद मंडल जी बहर खूब निभाया आपने बधाई, तीसरे शे र में देखिये सानी मिसरे में बात साफ नहीं है
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