कुकुभ छंद -२
देश की एकता, अखण्डता, सबकी वाहक है हिंदी
भाव, विचार, पूर्णता, संस्कृति, सभी का प्रतिरूप हिंदी |
आम जन की मधुर भाषा है, भारत को नई दिशा दी
है विदेश में भी यह अति प्रिय, लोग सिख रहे हैं हिंदी ||
सहज सरल है लिखना पढ़ना, सरल है हिन्द की बोली
संस्कृत तो माता है सबकी, बाकी इसकी हम जोली |
हिंदी में छुपी हुई मानो, आम लोग की अभिलाषा
जोड़ी समाज की कड़ी कड़ी, हिंदी जन-जन की भाषा ||
ताटंक -१
देश की होगी उन्नति तभी, जब उन्नत होगी हिंदी
कन्याकुमारी से श्रीनगर, जब बोली होगी हिंदी |
अनेकता और एकता का, स्वर उठाती यही हिंदी
प्रेम और सौहाद्र का अलग, दूजा नाम यही हिंदी ||
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
छंद के भाव अति सुन्द है श्री कालीपद जी, पर लय का अभाव दिख रहा है जैसा कि आदरणीय सौरभ जी ने भी बताया है |
हार्दिक बधाई आपको
आदरणीय कालीपद जी, आप छ्न्दों में मात्राओं की गिनती के अलावा शब्द-संयोजन पर भी अभ्यास कर रहे हैं. यहाँ इसकी बहुत कमी दिखी है और तुकान्तता के प्रति कृपया समझ विकसित कीजिये. छायावाद के ज़माने से पद्य-विधाओं के नियम अधिक ससे होने चाहिए.
सादर शुभकामनाएँ
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