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शत्रु ना छू पाय सीमा दोस्तों (ग़ज़ल)

२१२२ २१२२ २१२

शत्रु ना छू पाय सीमा दोस्तों
सावधानी का ज़माना दोस्तों |
वीर हो बलवान हो तुम पासबाँ
हो बुलंदी पर तिरंगा दोस्तों |
शूरवीरों पर ही आश्रित भारती
शिर न झुकने पाय इसका दोस्तों |
माज़रा सरहद पे उलझा है बहुत
साथ मिलकर ठान लेना दोस्तों |
प्राण से प्यारा हमें कश्मीर है
हाथ से जाने न देना दोस्तों |

मौलिक /अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 20, 2016 at 8:16am

आ. सौरभ पाण्डेय जी , विन्दुवत मार्ग दर्शन के लिए तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 20, 2016 at 8:13am

हार्दिक आभार आ. गिरिराज जी , भाव एवं शब्द का ताल मेल बैठाना मुश्किल लगता है | थोड़ा समय चाहिए | हार्दिक आभार |

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 20, 2016 at 8:09am

कोशिश जारी है आ शिज्जू 'शकूर ' जी ,हार्दिक आभार |

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 20, 2016 at 8:07am

सादर आभार आ. श्याम नारायण जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 20, 2016 at 4:23am

इस प्रयास केलिए हार्दिक बधाई आदरणीय.

ग़ज़ल केवल विधा और विधान से नहीं कुछेक मान्यताओं से भी चलती है. नहीं के लिए ना का प्रयोग गीत-कविता में जिस सहजता से चलता है, ग़ज़ल चाहे हिन्दी की हो या उर्दू की ना की जगह न का ही प्रयोग होता है. 

दूसरी बात, दोस्तों का प्रयोग अनुचित है. आपने सम्बोधित किया है तो फिर दोस्तो ही होगा, न कि दोस्तों. 

तीसरी बात, शिर का अर्थ मुझे स्पष्ट नहीं हुआ?

बाकी, मान्य सुधीजनों के कहे के प्रति आशान्वित रहें. 

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 19, 2016 at 8:26pm

आदरणीय कालीपद भाई , गज़ल पर खूब अच्छा प्रयास हुआ है , मिसरे बहर मे हैं , दिल से बधाइयाँ आपको । कहन के विषय मे मै भी आ. शिज्जु भाई जी से सहमत हूँ । कुछ समय और चाहते हैं शेर ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 19, 2016 at 10:54am

आ. कालिपद जी बह्र पर तो आपने खूब मेहनत की है, कहन के हवाले से ग़ज़ल थोड़ा समय और माँग रही है

Comment by Shyam Narain Verma on October 18, 2016 at 3:25pm
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर

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