For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहर :१२२*४

सभा में गरीबों की चर्चा नहीं है

किसी को  कभी उनकी चिन्ता नहीं है |

वज़ह होगी तो ही कहे दिल का अपना 

सकल सच तो कोई बताता नहीं है |

सभी ओर धोखा है सच्चा न कोई

सही कोई रिश्ता निभाता नहीं है |

हमारा तुम्हारा जो नाता पुराना

यहाँ ऐसा अब इक भी रिश्ता नहीं है |

सगे सब कुटुम्बी दिखावे के हैं अब

कमी है समझ की समझता नहीं है |

प्रणय गीत गाना सनम प्यार से अब

बिना प्यार जीवित ही रहना नहीं है |

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 579

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 8, 2016 at 12:17pm

आदरणीय समर कबीर साहब ,आदाब ,कल से ही कोशिश कर रहा हूँ परन्तु ओ बी  ओ खुल ही नहीं रहा था , खुला तो हैंग हो गया | 

आप जैसे निपुण शाईरों से  ही कुछ सिखने की उम्मीद करता हूँ | हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by Samar kabeer on October 7, 2016 at 11:37am
जनाब रवि शुक्ल जी आप जैसे महमान नसीब वालों को मिलते हैं,हमें भी वो दिन हमेशा याद रहेंगे ।
Comment by Ravi Shukla on October 7, 2016 at 11:20am

आदरणीय समर साहब दो हजार शेर पर उज्‍जैन में आपकी बैठक में आपका सुुनाया गया वाक्‍या याद आ गया । और साथ ही याद आई आपकी मेहमान नवाजी । दो यादगार दिन के लिये आपका बहुत बहुत अाभार ।   आदरणीय कालीपद जी  पुराने शाईरों को पढ़ने के लिये श्री अयोध्‍या प्रसाद गोयलीय की एक किताब के पांच खण्‍ड है शाईरी के नये मोड़़ हमारा व्‍यक्तिगत अनुभव है उसमें 1936 से लेकर नये दौर के शाईरों का कलाम है जिसमे आदरणीय समर साहब के मश्‍विरे के मूताबिक अल्‍फाज के इस्‍तेमाल के बेहतरीन उदाहरण मिलेंगे । गजल का शौक हमारी तरह दीवानगी की हद तक हो तो जरूर पढि़येगा । 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 7, 2016 at 11:13am
आदरणीय रवि शुक्ल जी , विस्तार से समझाने के लिए तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ | आ वीनस के "ग़ज़ल की बाते " एक एक पन्ना पढ़ रहा हूँ |
सादर
Comment by Samar kabeer on October 6, 2016 at 9:19pm
जनाब कालीपद प्रसाद जी आदाब,ग़ज़ल से आपकी मुहब्बत और उसे सीखने का जुनून। देख कर बेहद मसर्रत हासिल हुई,ये प्रयास भी अच्छा लगा,इसके लिये आप बधाई के पात्र हैं ।
जनाब रवि शुक्ल साहिब ने बहुत गुर की बात बताई है,उस पर ध्यान दीजियेगा ।
कहते हैं,शाइर अपने शैर की तशरीह करता हुआ अच्छा नहीं लगता ये काम तो क़ारी(पाठक)का होता है । में आपको एक नुस्ख़ा बताता हूँ कि आप कम से कम दो हज़ार शैर अलग अलग शाइरों के ज़बानी याद कर लीजिये उसके बाद आपकी शाइरी पर जो निखार आएगा वो दाद के क़ाबिल होगी,इसके अलावा पुराने शाइरों को ख़ूब पढ़ें,और अध्यन के समय उनकी ग़लती निकालने की कोशिश न करें,बल्कि कुछ सीखने की कोशिश करें,ख़ास कर उनकी अल्फ़ाज़ की बंदिश,उसे किस तरह बरता गया है,ध्यान दीजिये,उसके बाद ग़ज़ल का अभ्यास करते रहें,ग़ज़ल को आपसे बहुत उम्मीदें हैं ।
Comment by Ravi Shukla on October 6, 2016 at 5:46pm

आदरणीय कालीपद जी हमेे इतना मान देने के लिये ह्दय से आभारी है आपके । हमारे कहने का आशय केवल एक उदाहरण देकर बात को सप्‍ष्‍ट करने से है । इसीलिये एक शेर पर मिसरा बदलकर बात कही थी । अब आपके कहे पर विचार करके हम आपके शेर को देख रहे है तो आपका शेर सीधा सीधा आपके अर्थ के साथ हम तक पंहुच रहा है। पर हर जगह पाठक को आप स्‍पष्‍ट करने के लिये उपलब्‍ध तो हो नहीं सकते , इसलिये शेर में बह्र के निर्वाह के साथ शब्‍दों के चयन पर भी हमें ध्‍यान देना होगा जिससे जो बात हम कह रहे है वही निकल कर आए धीरे धीरे अभ्‍यास से इस तरह शेर कहने में आनंद आने लगता है आपकी लगन देख कर आश्‍वस्ति बनी है ।

हां इस बात पर गौर करियेगा  आदरणीय वीनस जी का दिया गया नुस्‍खा दम दार है गजल कह कर एक सप्‍ताह रख दीजिये फिर एक पाठक के रूप में से उसे पढे आपको उसमें यदि कोई कमी होगी तो अवश्‍य दिखाई देगी और सुधारने की जरूरत होगी तो वो भी नजर आ जाएगी । सादर 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 6, 2016 at 4:36pm

आ  सिज्जू 'शकूर'  जी , 'शब्द है 'समझता'  दुबारा लिखत वक्त टंकण दोष हो गया है आभार आपका |

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 6, 2016 at 4:35pm

आ रवि शुक्ल जी ,आपकी बात को मैं बहुत अधिक महत्त्व देता हूँ | सुझाव पर मैं सोचूँगा | किन्तु मेरा यहाँ सोच इस पकार थी कि वर्तमान सन्दर्भ में एक मित्र दुसरे मित्र से बोल रहा है  या फिर प्रेमी प्रेमिका से बोल रहा है | बातचीत  पाठक से नहीं हो रहा है | इस सन्दर्भ में क्या हो सकता ,कृपया बताइए |

Comment by Ravi Shukla on October 6, 2016 at 2:39pm

आदरणीय कालीपद जी इस बह्र को निभाने के लिये बहुत बहुत बधाई आदरणीय शिज्‍जु जी के बताये अनुसार काफिया सुघार लीजियेगा साथ ही एक बार कुछ दिनों के अंतराल से एक बार पाठक के लिहाज से गजल पर नजर डालेंगे तो स्‍वयं ही आपको कई लफ्ज बदलने का खयाल आयेगा जिससे गजल में और भी निखार आऐगा 

हमारा तुम्हारा जो नाता पुराना

यहाँ ऐसा अब इक भी रिश्ता नहीं है | जैसे इस शेर में एक पाठक के रूप में हमें पढ़ने में यह शेर त्‍वरित सुझाव के रूप  मे आया

जिसे देख कर कुछ सुकूं दिल को आए 

यहॉं  ऐसा कोई भी रिश्‍ता नहीं है । ये एक सुझाव मात्र है लेखकीय स्‍वतंत्रता सर्वोपरि है । सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 6, 2016 at 10:41am

बह्र निभाने का प्रयास अच्छा है आ. कालिपद मंडल जी बधाई आपको 

//सगे सब कुटुम्बी दिखावे के हैं अब

कमी है समझ की समझते नहीं है // यहाँ काफिया ग़लत है ज़रा देख लीजियेगा

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service