बहर :१२२*४
सभा में गरीबों की चर्चा नहीं है
किसी को कभी उनकी चिन्ता नहीं है |
वज़ह होगी तो ही कहे दिल का अपना
सकल सच तो कोई बताता नहीं है |
सभी ओर धोखा है सच्चा न कोई
सही कोई रिश्ता निभाता नहीं है |
हमारा तुम्हारा जो नाता पुराना
यहाँ ऐसा अब इक भी रिश्ता नहीं है |
सगे सब कुटुम्बी दिखावे के हैं अब
कमी है समझ की समझता नहीं है |
प्रणय गीत गाना सनम प्यार से अब
बिना प्यार जीवित ही रहना नहीं है |
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर साहब ,आदाब ,कल से ही कोशिश कर रहा हूँ परन्तु ओ बी ओ खुल ही नहीं रहा था , खुला तो हैंग हो गया |
आप जैसे निपुण शाईरों से ही कुछ सिखने की उम्मीद करता हूँ | हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया |
आदरणीय समर साहब दो हजार शेर पर उज्जैन में आपकी बैठक में आपका सुुनाया गया वाक्या याद आ गया । और साथ ही याद आई आपकी मेहमान नवाजी । दो यादगार दिन के लिये आपका बहुत बहुत अाभार । आदरणीय कालीपद जी पुराने शाईरों को पढ़ने के लिये श्री अयोध्या प्रसाद गोयलीय की एक किताब के पांच खण्ड है शाईरी के नये मोड़़ हमारा व्यक्तिगत अनुभव है उसमें 1936 से लेकर नये दौर के शाईरों का कलाम है जिसमे आदरणीय समर साहब के मश्विरे के मूताबिक अल्फाज के इस्तेमाल के बेहतरीन उदाहरण मिलेंगे । गजल का शौक हमारी तरह दीवानगी की हद तक हो तो जरूर पढि़येगा ।
आदरणीय कालीपद जी हमेे इतना मान देने के लिये ह्दय से आभारी है आपके । हमारे कहने का आशय केवल एक उदाहरण देकर बात को सप्ष्ट करने से है । इसीलिये एक शेर पर मिसरा बदलकर बात कही थी । अब आपके कहे पर विचार करके हम आपके शेर को देख रहे है तो आपका शेर सीधा सीधा आपके अर्थ के साथ हम तक पंहुच रहा है। पर हर जगह पाठक को आप स्पष्ट करने के लिये उपलब्ध तो हो नहीं सकते , इसलिये शेर में बह्र के निर्वाह के साथ शब्दों के चयन पर भी हमें ध्यान देना होगा जिससे जो बात हम कह रहे है वही निकल कर आए धीरे धीरे अभ्यास से इस तरह शेर कहने में आनंद आने लगता है आपकी लगन देख कर आश्वस्ति बनी है ।
हां इस बात पर गौर करियेगा आदरणीय वीनस जी का दिया गया नुस्खा दम दार है गजल कह कर एक सप्ताह रख दीजिये फिर एक पाठक के रूप में से उसे पढे आपको उसमें यदि कोई कमी होगी तो अवश्य दिखाई देगी और सुधारने की जरूरत होगी तो वो भी नजर आ जाएगी । सादर
आ सिज्जू 'शकूर' जी , 'शब्द है 'समझता' दुबारा लिखत वक्त टंकण दोष हो गया है आभार आपका |
आ रवि शुक्ल जी ,आपकी बात को मैं बहुत अधिक महत्त्व देता हूँ | सुझाव पर मैं सोचूँगा | किन्तु मेरा यहाँ सोच इस पकार थी कि वर्तमान सन्दर्भ में एक मित्र दुसरे मित्र से बोल रहा है या फिर प्रेमी प्रेमिका से बोल रहा है | बातचीत पाठक से नहीं हो रहा है | इस सन्दर्भ में क्या हो सकता ,कृपया बताइए |
आदरणीय कालीपद जी इस बह्र को निभाने के लिये बहुत बहुत बधाई आदरणीय शिज्जु जी के बताये अनुसार काफिया सुघार लीजियेगा साथ ही एक बार कुछ दिनों के अंतराल से एक बार पाठक के लिहाज से गजल पर नजर डालेंगे तो स्वयं ही आपको कई लफ्ज बदलने का खयाल आयेगा जिससे गजल में और भी निखार आऐगा
हमारा तुम्हारा जो नाता पुराना
यहाँ ऐसा अब इक भी रिश्ता नहीं है | जैसे इस शेर में एक पाठक के रूप में हमें पढ़ने में यह शेर त्वरित सुझाव के रूप मे आया
जिसे देख कर कुछ सुकूं दिल को आए
यहॉं ऐसा कोई भी रिश्ता नहीं है । ये एक सुझाव मात्र है लेखकीय स्वतंत्रता सर्वोपरि है । सादर
बह्र निभाने का प्रयास अच्छा है आ. कालिपद मंडल जी बधाई आपको
//सगे सब कुटुम्बी दिखावे के हैं अब
कमी है समझ की समझते नहीं है // यहाँ काफिया ग़लत है ज़रा देख लीजियेगा
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