कुकुभ छंद
१
घोड़े चढ़कर दुर्गनाशिनी, माँ भवानी आ रही है
घोड़े के वाहन पर दुर्गा, लौटकर भी जा रही है |
घोडा उथल पुथल का प्रतीक, युद्ध की संभावना है
ज्योतिष विद्या मानते इसको, देशो की तना तनी है |
२.
ज्योतिष गणना में है पाते, आपद विपद कष्ट सारा
पूजो माता दुर्गा को अब , माता ही एक सहारा |
भक्त वत्सला, शक्ति स्वरूपा, भक्तों के घर आएँगी
कार्तिक गणेश महेश को भी, साथ साथ ही लाएँगी |
३.
नवरात्रि में आद्य शक्ति स्रोत, उसकी होती है पूजा
है लक्ष्मी, सरस्वती, काली, दुर्गा वही, नहीं दूजा |
महालक्ष्मी रूप में सबको, समृद्धि प्रदान करती है
सरस्वती बनकर ही दात्री, अज्ञान को मिटाती है |
४.
पहली और तीसरी माता, शैलपुत्री चन्द्रघंटा
दूसरी और चौथी माता, ब्रह्मचारिणी कुष्मांडा
छठवीं और पाँचवीं पूजा, कात्यायिनी स्कन्द माता
कालरात्रि महागौरी रूप, सातवीं आठवीं पूजा |
५
सर्व सिद्धि दायिनी शक्ति हो, सिद्धिदात्री नवीं माता |
महाकाली महालक्ष्मी तू, सरस्वती देती विद्या |
नौ रूपी दुर्गा पूजा ही, है सब सुख समृद्धि दात्री
नौ रूपी दुर्गा माता है, दस्यु शुम्भ-निशुम्भ हन्त्री |
६.
महादेवी शिवा को प्रणाम, सर्वदा हमसब करते हैं
कल्याणी सुख शांति रूप में. सदा ही करुणामयी है |
नमस्कार है श्रद्धा कृष्णा, दुर्गा नमो दुर्गपारा
बारबार हम करते प्रणाम, तुम्ही हो ये जगत सारा |
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया आदरणीया कल्पना जी
आ. कालिपद सर बेहद सुंदर रचना हुई है | हार्दिक बधाई |
शुक्रिया आदरणीय शिज्जू 'शकूर ' जी
आ. कालिपद मंडल जी अच्छी रचना हुई है बहुत बहुत बधाई आपको
तहे दिल से शुक्रिया आ समर कबीर साहिब जी |आदाब
जय माता दी आ बृजेश कुमार जी |
जय माता दी
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