बहर : २१२ २१२ २१२ २१२ २२
ना करो ऐसे↓ कुछ, रस्म जैसे निभाती हो
आरसी भी तरस जाता↓, तब मुहँ दिखाती हो |
छोड़कर तब गयी अब हमें, क्यों रुला/ती हो
याद के झरने↓ में आब जू, तुम बहाती हो |
रात दिन जब लगी आँख, बन ख़्वाब आती हो
अलविदा कह दिया फिर, अभी क्यों सताती हो ?
जिंदगी जीये हैं इस जहाँ मौज मस्ती से
गलतियाँ भी किये याद क्यों अब दिलाती हो |
प्रज्ञ हो जानती हो कहाँ दुःखती रग है
शोक आकुल हुआ जब, मुझे तुम हँसाती हो |
कहती↓ थी मुँह कभी फेर लूँ तो तभी कहना
दु:खी हूँ या खफ़ा, तुम नहीं अब मनाती हो |
वक्सिसे जो मिली प्रेम के तेरे↓ चौखट पर
भूलना चाहता हूँ ,लगे दिल जलाती हो
मौलिक व अप्रकाषित
Comment
आदरणीय सुदेश कुमार जी , हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया |
आदरणीय गिरिराज जी ,आपने सही कहा ,मुझे मान्य बहर पर ही लिखना चाहिए | दर असल यह मेरा स्वयं का एक प्रयोग था | सादर
आदरणीय रवि शुक्लाजी ,शुक्रिया आपका
आदरनीय कालीपद भाई , गज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है , आपको हार्दिक बधाइयाँ । आदरनीय अभी आपको मान्य बहर पर प्रयास करना चाहिये ऐसा मुझे लगता है , आप ऐसी बहर को चुने जिन पर जानकार शुअरा गज़ल कह चुके हैं , ताकि लय पकड़ने मे भी आपको आसानी हो ।
आदाब आ समीर काबीर साहिब | मैं शकूर साहब से पूछ कर ठीक कर लूँगा | आभार आपका |सादर
आ. शिज्जू "शकूर "जी आदाब , क्या बहर ही गलत है या अशअर बेबहर हो गए हैं ? ज़रा स्पष्ट बताएं तो सुधार ले | सादर
आ. कालिपद सर अच्छा प्रयास है बस बह्र को लेकर शंका है, विद्वत जनों का इंतज़ार रहेगा, बहरहाल इस ग़ज़ल के लिए बधाई आपको
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online